संसद में लंबे समय तक व्यवधान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति |

संसद में लंबे समय तक व्यवधान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति

संसद में लंबे समय तक व्यवधान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति

:   Modified Date:  March 29, 2023 / 10:08 PM IST, Published Date : March 29, 2023/10:08 pm IST

नयी दिल्ली, 29 मार्च (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि संसद में लंबे समय तक हंगामे और व्यवधान को राजनीतिक रणनीति के हिस्से के रूप में नहीं सराहा जा सकता है।

उनका बयान ऐसे समय में आया है जब संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में अभी तक दोनों सदनों में हंगामा भारी रहा है।

दूसरे डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्मृति व्याख्यान में राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने कहा कि यह जरूरी है कि जनप्रतिनिधि अपने विधायी दायित्वों और पार्टी की मजबूरियों के बीच अंतर करें।

धनखड़ ने कहा, ‘‘यह जरूरी है कि विधायिका के सदस्य अपने विधायी दायित्वों और पार्टी की मजबूरियों के बीच अंतर करें। राजनीतिक रणनीति के तहत लंबे समय तक व्यवधान और शोर-शराबे की सराहना नहीं की जा सकती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संसद का रखरखाव सरकारी खजाने द्वारा भारी कीमत पर किया जाता है और यह दिन-ब-दिन काम नहीं करती है, यह बहुत दुखद है। वे हमें जवाबदेह ठहराना चाहते हैं। सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए प्रतिनिधियों को संसद में भेजना कितना विरोधाभासी है और वे इस समय एक अलग विचार कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘किसी व्यक्ति के लिए संसद से बड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो सकती। सांसदों को दीवानी और फौजदारी कार्रवाई से छूट दी गई है।’’

धनखड़ की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अडाणी मुद्दे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को निचले सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के मुद्दे पर बुधवार को दोनों सदनों की कार्यवाही एक बार फिर बाधित हुई।

तेरह मार्च को बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत के बाद से, लोकसभा में लगातार व्यवधान देखा जा रहा है। विपक्षी सदस्य अडानी मुद्दे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रहे हैं। 13 मार्च से हर दिन प्रश्नकाल बाधित होता रहा है।

धनखड़ ने यह भी कहा कि एक ‘‘वैश्विक शक्ति’’ के रूप में भारत के उदय का मुकाबला करने के लिए एक इकोसिस्टम को आकार दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत के कुछ अरबपति और बुद्धिजीवी, परिणाम की परवाह किए बिना, इन संस्थानों को वित्त पोषित करके इस तरह के घातक मंसूबों का शिकार हो गए हैं।’’

उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि न्यायपालिका और विधायिका के बीच मुद्दों को संविधान की भावना के अनुसार व्यवस्थित तरीके से निर्धारित किया जाना चाहिए, न कि टकराव के माध्यम से।

उन्होंने कहा, ‘‘कानून संसद का विशेषाधिकार है और इसके विश्लेषण, मूल्यांकन और हस्तक्षेप को किसी अन्य द्वारा किए जाने की आवश्यकता नहीं है। विधायिका के इरादे को कमजोर करने का कोई भी प्रयास एक ऐसी स्थिति के बराबर होगा जो स्वस्थ नहीं होगा और नाजुक संतुलन को बिगाड़ देगा।’’

भाषा ब्रजेन्द्र

ब्रजेन्द्र पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)