आरटीई कानून: पूरे देश में साझा पाठ्यक्रम के अनुरोध वाली याचिका पर दिल्ली सरकार, सीबीएसई को नोटिस
आरटीई कानून: पूरे देश में साझा पाठ्यक्रम के अनुरोध वाली याचिका पर दिल्ली सरकार, सीबीएसई को नोटिस
नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के कुछ प्रावधानों के ‘मनमाना और तर्कहीन’ होने और मदरसों और वैदिक पाठशालाओं सहित देश भर में कक्षा एक से आठ तक के छात्रों के लिए एक साझा पाठ्यक्रम के अनुरोध वाली एक याचिका पर दिल्ली सरकार, केंद्रीय माध्यमिक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से जवाब तलब किया।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने नये पक्षकारों – दिल्ली सरकार, सीबीएसई, एनएचआरसी को नोटिस जारी किए।
इसके अलावा, पीठ ने याचिका पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) और काउंसिल फॉर इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशंस को भी नोटिस जारी किये और पक्षकारों से अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 अगस्त की तारीख मुकर्रर की।
उच्च न्यायालय ने पहले याचिका पर केंद्रीय शिक्षा, कानून और न्याय तथा गृह मंत्रालयों को नोटिस जारी किये थे और उनसे जवाब मांगा था।
जनहित याचिका में कहा गया है कि आरटीई अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) का अस्तित्व और मातृभाषा में एक साझा पाठ्यक्रम की अनुपस्थिति अज्ञानता को बढ़ावा देती है और मौलिक कर्तव्यों की प्राप्ति में देरी होती है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि एक साझा शिक्षा प्रणाली को लागू करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है, लेकिन वह इस आवश्यक दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है, क्योंकि उसने पहले से मौजूद 2005 के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम प्रारूप (एनसीएफ) को अपनाया है जो बहुत ही पुराना है।
याचिका में आरटीई अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई है जो मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को इसके दायरे से बाहर करता है।
भाषा
अमित सुरेश
सुरेश

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