बजट से सैलरी क्लास, टैक्सपेयर्स की बढ़ी उम्मीद, कटेगी जेब या भरेगी

बजट से सैलरी क्लास, टैक्सपेयर्स की बढ़ी उम्मीद, कटेगी जेब या भरेगी

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  • Publish Date - February 1, 2020 / 03:41 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:03 PM IST

नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज 2020-21 का बजट पेश करने वाली है। इस बजट को लेकर मध्यम वर्ग खासकर सैलरी क्लास के लोगों की उम्मीदें ज्यादा जुड़ी हैं। हालांकि बजट के एक दिन पहले पेश किए गए सर्वेक्षण में आर्थिक सुस्ती और विकास की धीमी रफ्तार का जिक्र है लेकिन इसके निदान की तरफ भी संकेत किया गया है। आखिर वो वित्त मंत्री 2020-21 के बजट में ऐसी क्या सौगात देती हैं जिससे खरीदारी और निवेश बढ़े।

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1997-98 के बजट को ड्रीम बजट कहा जाता है। इसे तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पेश किया था। उस बजट में इनकम टैक्स की ऊपरी सीमा 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दी गई थी। सरकारी कंपनियों के निजीकरण का रास्ता खोला गया। अचानक इनकम टैक्स कलेक्शन में तेजी आई और सैलरी वालों ने टैक्स से बचे पैसे को वाहन, फ्लैट, प्लॉट खरीदने में लगाया। निवेश के दूसरे साधनों में पैसे लगे। इकॉनमी ऐक्टिव हुई और मैनुफैक्चरिंग बढ़ी। एक ऐसा चक्र बना जिसने विकास दर को तेज रफ्तार दी।

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इकॉनमी की नब्ज पकड़ने वालों में आम सहमति है कि कॉर्पोरेट टैक्स घटाने के बाद इनकम टैक्स स्लैब को भी उसी हिसाब से सेट किया जाना चाहिए। चिदंबरम के ड्रीम बजट के 22 साल बाद भी अपर लिमिट 30 प्रतिशत ही है। यही नहीं सरचार्ज जोड़ दें तो ये कहीं ज्यादा बैठता है। अगर सीतारमण टैक्सपेयर के लिए जैसा कोई बड़ा ऐलान करती हैं तो अगले वित्त वर्ष में 6 से 6.5 पर्सेंट जीडीपी का लक्ष्य पाना आसान हो सकता है।

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इस दौरान भारत 1991 के आर्थिक संकट से बाहर निकल गया। जीडीपी 5 फीसदी के आस-पास थी। आज हम उसी मोड़ पर हैं। विकास दर 10 फीसदी को छूकर पुराने पांच फीसदी के आंकड़े पर चली गई है। बेरोजगारी 40 वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है। ऐसे में वित्त मंत्री के सामने ऐसा बजट पेश करने की चुनौती है जो न सिर्फ सुस्त रफ्तार पर एक्सलेटर लगाए बल्कि घाटा भी पाटे। जीएसटी और डायरेक्ट टैक्स, दोनों से जितनी आमदनी सरकार ने सोची थी, उतनी हुई नहीं है।