नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि बड़े पैमाने पर शहरीकरण के कारण वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र में दिन-प्रतिदिन हो रही गिरावट को देखते हुए वनस्पतियों और जीवों के लिए खतरा ‘वास्तविक’ है और दोषियों को सजा दिलाने के लिए अधिकारियों को सख्त रुख अपनाने की जरूरत है।
हालांकि, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायामूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि किसी आरोपी के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों के किसी भी तरह के उल्लंघन का तभी समर्थन किया जाना चाहिए जब अभियोजन पक्ष मानकों को पूरा करता हो।
पीठ ने कहा, ‘‘इस बात पर अधिक जोर देने की जरूरत नहीं है कि वर्तमान समय में, बड़े पैमाने पर शहरीकरण, उपनिवेशीकरण, औद्योगीकरण और विभिन्न वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए भूमि-उपयोग के कारण वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खुला छोड़ा गया क्षेत्र हर दिन कम होता जा रहा है, वन्य जीवन, वनस्पतियों और जीवों के लुप्तप्राय होने और यहां तक कि विलुप्त होने का खतरा वास्तविक है, काल्पनिक नहीं है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, निस्संदेह, सरकारों और संबंधित अधिकारियों द्वारा बहुत सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता है। यदि (वन्यजीव संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी अपराध के लिए अभियुक्त का अपराध उचित संदेह से परे स्थापित हो जाता है, तो दी जाने वाली सजा उचित और अपराध के अनुरूप होनी चाहिए, जैसा कि अधिनियम में निहित है।’’
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी दो आरोपियों द्वारा दायर एक याचिका पर आई, जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें बाघ की खाल और जंगली जानवरों के उत्पादों के अवैध व्यापार के एक मामले में उनकी सजा के खिलाफ उनकी पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन अभियुक्तों को दी गई सजा को तीन साल के साधारण कारावास और 25,000 रुपये के जुर्माने में तब्दील कर दिया। जुर्माने की राशि को आठ सप्ताह के भीतर चुकाना होगा।
भाषा संतोष माधव
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