नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को उनके लगातार खराब हो रहे स्वास्थ्य के मद्देनजर राहत प्रदान करते हुए घर में नजरबंद रखने के उनके अनुरोध को बृहस्पतिवार को सशर्त मंजूरी दे दी।
यह देखते हुए कि नवलखा 14 अप्रैल, 2020 से हिरासत में हैं, और प्रथम दृष्टया उनकी चिकित्सीय रिपोर्ट खारिज करने की कोई वजह नहीं है, शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले को छोड़कर नवलखा की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और यहां तक कि भारत सरकार ने भी उन्हें माओवादियों से बातचीत के लिए वार्ताकार नियुक्त किया था।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कई शर्तें लगाते हुए कहा कि 70 वर्षीय नवलखा को मुंबई में एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने के आदेश को 48 घंटे के भीतर अमल में लाया जाए।
पीठ ने कहा, ‘‘मामले के निकट भविष्य में निस्तारण की ओर प्रगति करने के आसार नहीं हैं और आरोप तय नहीं किए जा रहे हैं। हमारा मानना है कि उन्हें एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसमें कोई विवाद नहीं है कि इस मामले के अलावा याचिकाकर्ता की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा,‘‘2011 में माओवादियों द्वारा अपहृत लोगों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए चरमपंथियों के साथ मध्यस्थता करने के लिए याचिकाकर्ता की सेवा ली गयी थी। हमें लगता है कि हमें याचिकाकर्ता को एक महीने की अवधि के लिए घर में नजरबंद रखने की अनुमति देनी चाहिए। प्रतिवादी हमारे द्वारा बताए गए परिसर का आवश्यक मूल्यांकन करेंगे।’’
न्यायालय ने नवलखा को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को 2.40 लाख रुपये जमा कराने का भी निर्देश दिया। एनआईए ने पुलिसकर्मी उपलब्ध कराने में यह अनुमानित खर्च आने का दावा किया था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि नवलखा को एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने के दौरान कम्प्यूटर तथा इंटरनेट इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता घर में नजरबंद रहने के दौरान कम्प्यूटर, इंटरनेट या संचार के किसी अन्य उपकरण का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हालांकि, उन्हें पुलिस की मौजूदगी में दिन में एक बार 10 मिनट के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा उपलब्ध कराए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी, लेकिन बगैर इंटरनेट के।’’
शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि नवलखा को मुंबई छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी और वह घर में नजरबंद रहने के दौरान किसी भी तरीके से गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे।
उसने कहा कि टेलीविजन देखने और अखबार पढ़ने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन ये इंटरनेट आधारित नहीं होने चाहिए।
न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस को आवास की तलाशी और निरीक्षण करने की अनुमति देते हुए कहा कि आवास निगरानी में रहेगा।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि कमरों के बाहर और उनके घर के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे।
पीठ ने कहा कि नवलखा को पुलिसकर्मियों के साथ घूमने के अलावा घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें जेल मैनुअल के नियमों के अनुसार अपने वकीलों से मिलने और चिकिस्ता की आपात स्थिति में पुलिसकर्मियों को सूचित करने की भी अनुमति होगी।
मामला अब दिसंबर के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को इस बीच एक नयी मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम याचिकाकर्ता तथा साथियों से सभी शर्तों का ईमानदारी से पालन करने की अपेक्षा करते हैं। किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा और आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जा सकता है।’’
न्यायालय ने बुधवार को एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से उसे यह बताने के लिए कहा था कि वह नवलखा को घर में नजरबंद रखे जाने पर किस तरह की पाबंदियां लगाना चाहते हैं।
राजू ने बृहस्पतिवार को सुनवाई शुरू होने पर कहा कि कहानी में मोड़ है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास यह मानने की वजह है कि चिकित्सा रिपोर्ट से छेड़छाड़ की गयी है।’’
उन्होंने कहा कि मुंबई में जसलोक हॉस्पिटल द्वारा दायर चिकित्सा रिपोर्ट से ‘‘छेड़छाड़’’ होने की आशंका है क्योंकि नवलखा के एक रिश्तेदार चिकित्सक बोर्ड का हिस्सा थे।
शीर्ष अदालत ने हालांकि कहा, ‘‘श्रीमान राजू, हमने रिपोर्ट का अध्ययन किया है। यह विभिन्न विषयों के विभिन्न चिकित्सकों द्वारा दी गई एक रिपोर्ट है। आप डॉक्टरों में से एक के (नवलखा के) रिश्तेदार होने की ओर इशारा करके पूर्वाग्रह पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।’’
नवलखा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बुधवार को कहा था कि चिकित्सा रिपोर्ट दिखाती है कि उनका जेल में इलाज किए जाने की संभावना नहीं है।
राजू ने याचिका का कड़ा विरोध किया था और कहा था कि नवलखा की सेहत इतनी खराब भी नहीं है कि उन्हें घर में नजरबंद रखा जाए।
नवलखा ने मुंबई के पास तलोजा जेल में पर्याप्त चिकित्सा और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी की आशंकाओं के मद्देनजर घर में नजरबंद करने का अनुरोध बंबई उच्च न्यायालय से किया था, लेकिन इसने 26 अप्रैल को यह अनुरोध ठुकरा दिया था। इसके बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
भाषा
सुरेश माधव
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