भाजपा सांसद के खिलाफ एसआईटी जांच की याचिका पर न्यायालय ने झारखंड सरकार और ईडी से जवाब मांगा

भाजपा सांसद के खिलाफ एसआईटी जांच की याचिका पर न्यायालय ने झारखंड सरकार और ईडी से जवाब मांगा

भाजपा सांसद के खिलाफ एसआईटी जांच की याचिका पर न्यायालय ने झारखंड सरकार और ईडी से जवाब मांगा
Modified Date: October 14, 2025 / 08:26 pm IST
Published Date: October 14, 2025 8:26 pm IST

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने झारखंड से भाजपा सांसद ढुल्लू महतो के खिलाफ भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति रखने और बेनामी संपत्ति के आरोपों की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच के अनुरोध वाली याचिका पर मंगलवार को नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता सोमनाथ चटर्जी की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया।

पीठ ने झारखंड सरकार और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) तथा आयकर विभाग सहित केंद्रीय जांच एजेंसियों से जवाब मांगा है।

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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि धनबाद के सांसद ने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की है और वे विभिन्न आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं।

उन्होंने उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायालय की निगरानी में एसआईटी के गठन की मांग की, जिसमें सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग और झारखंड पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हों, ताकि समयबद्ध तरीके से व्यापक जांच की जा सके।

याचिका के अनुसार, चटर्जी ने 2018 में झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और महतो के खिलाफ पूर्व में दायर एक जनहित याचिका में 2016 के आदेश के अनुसार जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए वैधानिक अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया था।

हालाँकि, उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया था।

इसके बाद, याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में एक नयी जनहित याचिका दायर कर एसआईटी जांच और विभिन्न एजेंसियों के समक्ष लंबित सभी जांच को एक ऐसी टीम को सौंपने का आग्रह किया। उन्होंने जांच की नियमित न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए भी एक आदेश का अनुरोध किया।

उच्च न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह वास्तविक जनहित का मामला नहीं है, क्योंकि इसी तरह के आरोपों की पहले भी जांच की जा चुकी है और उन्हें खारिज कर दिया गया है।

शीर्ष अदालत में इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय बेनामी संपत्ति और आय से अधिक आय की खोज के संबंध में एजेंसियों की स्वयं की स्वीकारोक्ति की सराहना करने में विफल रहा।

उन्होंने कहा कि अदालत ने ‘‘महत्वपूर्ण तथ्यों को नज़रअंदाज़’’ किया और यह स्पष्ट करने में विफल रही कि भ्रष्टाचार के व्यापक सबूतों के बावजूद यह मामला जनहित में क्यों नहीं है।

भाषा नेत्रपाल नरेश

नरेश


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