निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते: उच्चतम न्यायालय

निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते: उच्चतम न्यायालय

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  • Publish Date - February 29, 2024 / 12:15 PM IST,
    Updated On - February 29, 2024 / 12:15 PM IST

नयी दिल्ली, 29 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को व्यवस्था दी कि दीवानी और आपराधिक मामलों में निचली अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये स्थगन आदेश छह माह के बाद आपने आप रद्द नहीं हो सकते।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ 2018 के अपने उस फैसले से सहमत नहीं हुई, जिसमें कहा गया था कि निचली अदालतों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द हो जाने चाहिए, जब तक कि उसे विशेष रूप से बढ़ाया न जाए।

फैसले में (इस विषय पर) दिशानिर्देश जारी करते हुए यह भी कहा गया है कि संवैधानिक अदालतों, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय करने से बचना चाहिए और ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।

पीठ ने दो अलग-अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले सुनाये।

न्यायमूर्ति ए. एस. ओका ने कहा, ‘‘संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं।’’

न्यायामूर्ति ओका ने खुद की ओर से तथा न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए फैसला लिखा।

उन्होंने कहा, ‘‘स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते।’’

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने मामले में एक अलग, लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा।

शीर्ष अदालत ने 13 दिसंबर 2023 को वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

भाषा खारी सुरेश

सुरेश