अध्ययनः शोधकर्ताओं ने मधुमेह प्रबंधन के लिए औषधीय पौधों पर और शोध व परीक्षण पर जोर दिया |

अध्ययनः शोधकर्ताओं ने मधुमेह प्रबंधन के लिए औषधीय पौधों पर और शोध व परीक्षण पर जोर दिया

अध्ययनः शोधकर्ताओं ने मधुमेह प्रबंधन के लिए औषधीय पौधों पर और शोध व परीक्षण पर जोर दिया

:   Modified Date:  May 27, 2023 / 04:51 PM IST, Published Date : May 27, 2023/4:51 pm IST

नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) कम से कम 400 औषधीय पौधे ऐसे हैं जो रक्त में शर्करा के स्तर को कम करने में मददगार हो सकते हैं, लेकिन इनमें से अब तक केवल 21 पर ही गहन शोध किया गया है। शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।

शोधकर्ताओं ने ‘ट्रीटमेंट इन नेचर्स लैप: यूज ऑफ हर्बल प्रोडक्ट्स इन मैनेजेमेंट ऑफ हाइपरग्लाइसीमिया’ शीर्षक वाले इस अध्ययन में यह भी कहा कि (मधुमेह से निपटने संबंधी) ‘कई एलोपैथिक दवाओं की पृष्ठभूमि जड़ी-बूटियों से जुड़ी है।’

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक उत्पादों के साक्ष्य-आधारित परीक्षणों से ‘मधुमेह से आधुनिक तरीके से निपटने के लिए नयी दवाएं तैयार की जा सकती हैं।”

जवाहरलाल स्नातकोत्तर स्वास्थ्य शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान-पुडुचेरी और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान-कल्याणी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन हाल में ‘वर्ल्ड जर्नल ऑफ डायबिटीज’ में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में कहा गया है, ‘प्रकृति में कम से कम 400 औषधीय पौधे मौजूद हैं जो रक्त में शर्करा के स्तर को कम करने में प्रभावी हो सकते हैं। ये पौधे टाइप-2 मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है।’

अध्ययन के अनुसार, “अब तक, केवल 21 औषधीय पौधों का अध्ययन किया गया है, जिनमें विजयसार, जामुन, जीरा, दारुहरिद्रा, छोटी लौकी, बेल, मेथी, नीम, आंवला और हल्दी शामिल हैं। ये मधुमेह की समस्या से निपटने में मददगार पाए गए हैं।’’

शोधकर्ताओं ने ‘पबमेड’ पर उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि ये औषधीय पौधे मधुमेह के प्रबंधन के लिए कई दवाओं का आधार रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा तैयार किए गए बीजीआर-34 जैसे हर्बल फार्मूलों का भी हवाला दिया।

एमिल फार्मास्यूटिकल्स द्वारा विपणन की जा रही बीजीआर-34 में चार औषधीय जड़ी-बूटियों दारुहरिद्रा, गुडमार, मेथी और विजयसार से प्राप्त कई सक्रिय यौगिक शामिल हैं।

एमिल फार्मास्युटिकल्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा ने कहा, ‘ इनके अलावा प्रतिरोधक क्षमता व एंटी-ऑक्सीडेंट स्तर को बढ़ाने के लिए इसमें गिलोय और मजीठ जैसे पादप भी मिलाए गए हैं।’

शोधकर्ताओं के विचारों को प्रतिध्वनित करते हुए उन्होंने कहा “प्रकृति में अनेकों तरह की गुणकारी औषधियां मौजूद हैं। इसकी जानकारी चिकित्सा और आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी उपलब्ध है।”

शर्मा ने कहा, ‘चूंकि भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या खतरनाक दर से बढ़ रही है, इसलिए अन्य हर्बल पौधों पर शोध चिकित्सा क्षेत्र को एक नया दृष्टिकोण दे सकता है।’

पिछले साल नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक अध्ययन में आयुर्वेदिक दवा ‘बीजीआर-34’ को मधुमेह रोगियों के लिए न सिर्फ असरदार पाया ब​ल्कि इसके सेवन से रोगियों के उपापचय (मेटाबॉलिज्म) तंत्र में भी सुधार देखा।

नवीनतम अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि मधुमेह विरोधी गुण दर्शाने वाले अनार, शिलाजीत, बीन, चाय, जिन्कगो बिलोबा और केसर जैसे आठ पौधों पर आंशिक शोध किया गया है और इन पर अधिक परीक्षणों की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि कई एलोपैथिक दवाओं की पृष्ठभूमि हर्बल होती है और शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में इसका उल्लेख करते हुए मधुमेह प्रबंधन के लिए मेटफोर्मिन जैसी एलोपैथिक दवाओं के उदाहरणों का हवाला दिया, जो गलेगा आफिसिनैलिस पौधे से प्राप्त की जाती है।

अध्ययन में कहा गया है कि इसी तरह मधुमेह के उपचार में प्रभावी दवा एसजीएलटी2 (सोडियम-ग्लूकोज कोट्रांसपोर्टर -2) सेब के पेड़ की छाल से फ्लोरिजिन की प्राप्ति के बाद तैयार की गयी।

भाषा जोहेब सिम्मी पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)