समन जारी करने का आदेश सोच-समझकर दिया जाए: दिल्ली उच्च न्यायालय

समन जारी करने का आदेश सोच-समझकर दिया जाए: दिल्ली उच्च न्यायालय

समन जारी करने का आदेश सोच-समझकर दिया जाए: दिल्ली उच्च न्यायालय
Modified Date: June 28, 2025 / 07:42 pm IST
Published Date: June 28, 2025 7:42 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 84 लाख रुपये के धोखाधड़ी मामले में एक व्यक्ति को तलब किये जाने के आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि समन जारी करना एक गंभीर मामला है तथा यह अनिवार्य है कि ऐसा आदेश सोच-समझकर दिया जाए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यद्यपि दिवानी उपचार की मौजूदगी आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने से नहीं रोकती है लेकिन यह स्थापित कानून है कि मात्र अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के अपराध को जन्म नहीं देता है और यह दर्शाया जाना चाहिए कि वादा करते समय आरोपी का इरादा बेईमानी का था।

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न्यायमूर्ति अमित महाजन ने 23 जून के आदेश में कहा, ‘‘समन जारी करना एक गंभीर मुद्दा है और इसलिए यह अनिवार्य है कि समन जारी करने के आदेश में यह नजर आए कि विवेक का इस्तेमाल किया गया है तथा मामले के तथ्यों और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों को परखा गया है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘केवल तथ्यों पर ध्यान देना और प्रथम दृष्टया संतुष्टि दर्ज करना लेकिन कोई कारण नहीं बताया जाना अपर्याप्त है।’’

यह मामला स्टॉक का कारोबार करने वाली कंपनी ‘मेसर्स इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज लिमिटेड’ द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत पर आधारित है।

इस व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने मामले में उसे आरोपी के रूप में तलब किये जाने पर अधीनस्थ अदालत के 28 सितंबर, 2013 के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

अपनी शिकायत में कंपनी ने आरोप लगाया कि इस व्यक्ति ने बेईमानी से कंपनी को अपने नाम से खाता खोलने के लिए प्रेरित किया और ‘मार्जिन कारोबार’ की सुविधा का लाभ उठाया, जहां निवेशक शेयर की खरीददारी के सिलसिले में अपनी क्रय शक्ति बढ़ाने और संभावित रूप से अपने लाभ को बढ़ाने के लिए अपने ब्रोकर से रकम उधार लेते हैं, लेकिन कई ‘मार्जिन कॉल’ के बावजूद वह इसे चुकाने में विफल रहा।

उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में उस व्यक्ति ने दावा किया कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप बेतुके और एक तरह से असंभव हैं तथा अपराध संबंधी जरूरी बुनियादी बातों पर गौर किये बिना अधीनस्थ अदालत ने यंत्रवत आदेश पारित किया ।

भाषा

राजकुमार संतोष

संतोष


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