केंद्र सिंधु संधि के तहत पाकिस्तान के हिस्से के पानी के अधिकतम उपयोग पर अध्ययन की योजना बना रहा |

केंद्र सिंधु संधि के तहत पाकिस्तान के हिस्से के पानी के अधिकतम उपयोग पर अध्ययन की योजना बना रहा

केंद्र सिंधु संधि के तहत पाकिस्तान के हिस्से के पानी के अधिकतम उपयोग पर अध्ययन की योजना बना रहा

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Modified Date: April 26, 2025 / 06:54 PM IST
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Published Date: April 26, 2025 6:54 pm IST

नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा) केंद्र सरकार उन तीन नदियों के पानी की मात्रा का अधिकतम उपयोग करने के तरीकों पर अध्ययन करने की योजना बना रही है, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान सिंधु जल संधि के तहत कर रहा था। सिंधु समझौते को अब निलंबित कर दिया गया है।

यह प्रस्ताव शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में रखा गया, जिसमें 1960 की सिंधु जल संधि पर भविष्य की कार्रवाई के संबंध में चर्चा की गई। पहलगाम में आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त कदम उठाते हुए भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया।

विश्व बैंक की मध्यस्थता वाली संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों- सतलुज, ब्यास और रावी के पानी पर विशेष अधिकार दिए गए थे, जिसका औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) है। पश्चिमी नदियों-सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी बड़े पैमाने पर पाकिस्तान को आवंटित किया गया था, जिसका औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 135 एमएएफ है।

संधि के स्थगित होने के बाद सरकार सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी का उपयोग करने के तरीकों पर विचार कर रही है।

शुक्रवार की उच्च स्तरीय बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने की रणनीति पर काम कर रही है कि पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई निर्देश जारी किए हैं और उन पर अमल के लिए यह बैठक आयोजित की गई। शाह ने बैठक में उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई सुझाव दिए।

बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत से पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान में न जाए।’’

सूत्रों ने कहा कि सरकार अपने निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक योजना पर काम कर रही है।

एक अधिकारी के अनुसार, मंत्रालय को तीन पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करने के तरीकों पर अध्ययन करने के लिए कहा गया है।

विशेषज्ञों ने बुनियादी ढांचे की कमी के बारे में बात की है जो संधि को निलंबित करने के फैसले से मिलने वाले पानी का पूरी तरह से उपयोग करने की भारत की क्षमता को सीमित कर सकती है।

‘साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल’ (एसएएनडीआरपी) के हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘‘वास्तविक समस्या पश्चिमी नदियों से संबंधित है, जहां बुनियादी ढांचे की सीमाएं हमें पानी के प्रवाह को तत्काल रोकने से रोकती हैं।’’

ठक्कर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘चिनाब घाटी में हमारी कई परियोजनाएं चल रही हैं, जिन्हें पूरा होने में पांच से सात साल लगेंगे। तब तक, स्वाभाविक कारण से पानी पाकिस्तान की ओर बहता रहेगा। एक बार ये चालू हो जाएं, तो भारत के पास नियंत्रण तंत्र होगा, जो वर्तमान में मौजूद नहीं है।’’

पर्यावरण कार्यकर्ता और मंथन अध्ययन केंद्र के संस्थापक श्रीपद धर्माधिकारी ने भी यह मानने से आगाह किया है कि भारत पानी के बहाव को तेजी से मोड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल हमारे पास पाकिस्तान में पानी के बहाव को रोकने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का अभाव है।’’

जल-बंटवारे के समझौते पर भारत के फैसले के जवाब में पाकिस्तान की सीनेट ने एक प्रस्ताव में कहा है कि यह कदम ‘‘युद्ध की कार्रवाई’’ के बराबर है।

भाषा आशीष माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)