प्रयोगशालाओं में तैयार ऊतकों, कोशिकाओं पर हो सकता है दवा का परीक्षण; नियमों में बदलाव की तैयारी

प्रयोगशालाओं में तैयार ऊतकों, कोशिकाओं पर हो सकता है दवा का परीक्षण; नियमों में बदलाव की तैयारी

प्रयोगशालाओं में तैयार ऊतकों, कोशिकाओं पर हो सकता है दवा का परीक्षण; नियमों में बदलाव की तैयारी
Modified Date: December 10, 2022 / 05:17 pm IST
Published Date: December 10, 2022 5:17 pm IST

(पायल बनर्जी)

नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) नयी दवाओं का प्री-क्लिनिकल परीक्षण केवल जानवरों पर ही नहीं जल्द ही प्रयोगशालाओं में विकसित मानव ऊतकों और कोशिकाओं पर किया जा सकता है। इसके लिए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय नयी दवाओं और क्लीनिकल ट्रायल नियम, 2019 में संशोधन पर काम कर रहा है।

नियमों में संशोधन के लिए हालिया मसौदा अधिसूचना में कहा गया है कि मानव क्लीनिकल ट्रायल से पूर्व नयी दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता स्थापित करने के लिए ऊतक-आधारित जांच का उपयोग किया जा सकता है। इसके तहत जानवरों पर परीक्षण और संयोजन के साथ वैकल्पिक प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म जैसे कि चिप्स पर मानव अंग, ‘माइक्रो-फिजियोलॉजिकल सिस्टम’ और अन्य इन विट्रो का इस्तेमाल हो सकता है। जांच के अधीन दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता स्थापित करने के लिए प्री-क्लीनिकल ट्रायल महत्वपूर्ण हैं।

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सितंबर में, अमेरिकी कांग्रेस (संसद) ने महत्वपूर्ण एफडीए आधुनिकीकरण विधेयक को मंजूरी दी, जो दवा निर्माताओं को वैकल्पिक तरीकों का उपयोग करने की अनुमति देता है। इनमें ऊतक-आधारित जांच, चिप्स पर अंग, माइक्रो-फिजियोलॉजिकल सिस्टम और अन्य मानव जीव विज्ञान-आधारित परीक्षण विधियां शामिल हैं। इसके तहत प्रयोगशाला में नयी दवाओं की सुरक्षा और प्रभावशीलता देखने के साथ मानव क्लीनिकल ट्रायल से पहले जानवरों पर परीक्षण की अनुमति दी गई।

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नए दवा और क्लीनिकल ट्रायल नियम, 2019 में संशोधन को मंजूरी और अधिसूचित किए जाने के बाद भारत ऐसी नवीन और अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाने और बढ़ावा देने वाला अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा देश बन जाएगा। उन्होंने कहा कि जानवरों पर क्रूरता कम करने पर ध्यान के साथ नयी दवाओं और प्रभावी उपचारों को लाने में समय के साथ-साथ लागत में महत्वपूर्ण कमी आई है।

इन वैकल्पिक तकनीकों ने अकेले पशु मॉडल का उपयोग करके विकसित दवाओं की तुलना में प्री-क्लीनिकल और क्लीनिकल खोजों की सफलता दर में 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक सुधार करने की क्षमता दिखाई है। पशु मॉडल से 80 से 90 प्रतिशत तक की विफलता दर रहती है।

आधिकारिक सूत्र ने बताया कि सहमति प्रक्रिया के माध्यम से नियोजित सर्जरी के दौरान उपलब्ध कराए गए रक्त, ऊतक और मूत्र जैसे मानव जैव-नमूनों का उपयोग प्रयोगशाला अंग प्रणालियों और अंग को चिप्स पर विकसित करने के लिए किया जा रहा है। इससे इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल के पहले दवा का इस्तेमाल प्री-क्लीनिकल जांच के लिए मानव अंगों पर किया जा सकता है।

सूत्र ने बताया कि यह अकेले पशु प्रणालियों पर परीक्षण की गई अप्रभावी और जहरीली दवाओं के संपर्क में आने से मनुष्यों को होने वाले जोखिम को कम करता है। यह समयबद्ध और लागत प्रभावी तरीके से नयी दवाओं की खोज को भी सक्षम बनाता है, जिससे देश में नयी दवाओं की खोज और नैदानिक नवाचार को बढ़ावा मिलने की संभावना है।

इसके अलावा, चूंकि विभिन्न मानव जातियों और नस्लों में आनुवंशिक अंतर हैं, इसलिए यह तकनीक किसी आबादी में दवाओं की प्रभावशीलता का परीक्षण करने में भी उपयोगी होगी, जब उन्हें पहले किसी अन्य आबादी, जातीयता और भूगोल पर परीक्षण किया गया हो।

भाषा आशीष पवनेश

पवनेश


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