यह प्रदर्शन किसानों के लिए नहीं बल्कि केंद्र का विरोध करने के लिए है : रूपाला

यह प्रदर्शन किसानों के लिए नहीं बल्कि केंद्र का विरोध करने के लिए है : रूपाला

यह प्रदर्शन किसानों के लिए नहीं बल्कि केंद्र का विरोध करने के लिए है : रूपाला
Modified Date: November 29, 2022 / 08:25 pm IST
Published Date: December 18, 2020 9:57 am IST

अहमदाबाद, 18 दिसंबर (भाषा) केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि दिल्ली की सीमा पर तीन कृषि कानूनों के विरोध में हो रहा प्रदर्शन किसानों के कल्याण के लिए नहीं बल्कि केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए है।

उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे पहले इन कानूनों को लागू होने दें और बाद में किसी संशोधन के लिए सरकार के पास जाएं।

केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री रूपाला ने कहा, ‘‘ यह प्रदर्शन किसानों के कल्याण के लिए बिल्कुल नहीं है। यह केवल केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए हो रहा है। हमेशा भविष्य में संशोधन की संभावना होती है, अगर किसान यह महसूस करते हैं कि कुछ प्रावधान ठीक नहीं हैं। ऐसे में कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की मांग इस समय उचित नहीं है।’’

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गुजरात के भाजपा नेता रूपाला ने यह बात मेहसाणा जिले के विजापुर कस्बे में आयोजित किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही, जिसका आयोजन भाजपा द्वारा तीन कृषि कानूनों के प्रति लोगों को जागरूक करने के अभियान के तहत किया गया, जिनका विरोध कुछ किसान संगठन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप पुरानी प्रणाली चाहते हैं तो कोई भी आपको कृषि उत्पादों को एपीएमसी में बेचने से रोकेगा नहीं, लेकिन आप उन लोगों को क्यों रोकना चाहते हैं जो एपीएमसी से बाहर अपने उत्पादों के बेचकर अधिक कमाना चाहते हैं।’’

रूपाला ने कहा, ‘‘इसी तरह से कोई भी किसानों को अनुबंध कृषि के लिए मजबूर नहीं कर रहा है, इस आशंका को त्याग दें कि कारोबारी अनुबंध के जरिए आपकी जमीन पर कब्जा कर लेंगे।’’

उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति विश्वास रखें और पहले कृषि कानूनों को लागू होने दें।

रूपाला ने कहा, ‘‘कुछ सालों तक कृषि कानूनों को लागू करने दें। बाद में अगर संशोधन की जरूरत होगी तो सरकार उनमें बदलाव करेगी। हमें इससे कोई समस्या नहीं है लेकिन सरकार से हां या न में बात करना अस्वीकार्य है। अगर केवल कुछ लोगों द्वारा पंसद नहीं किए जाने पर कानून रद्द किए जाने लगेंगे तो फिर संसद की क्या जरूरत है।’’

भाषा धीरज नरेश

नरेश


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