शिमला, 23 मई (भाषा) हिमाचल प्रदेश में किन्नौर जिले के एक दूरदराज के गांव की आदिवासी महिला छोंजिन आंगमो पूरी तरह दृष्टिबाधित हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी इसे अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया।
हेलेन केलर को आदर्श मानने वाली आंगमो उनके इस कथन पर गहराई से विश्वास करती हैं – ‘‘दृष्टिबाधित होने से बुरी बात है आंखों के होते हुए भी दृष्टि (कोई सपना) न होना।’’
सोमवार को उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला और दुनिया की पांचवीं ऐसी शख्स बनकर इतिहास रच दिया और धरती की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराया।
भारत-तिब्बत सीमा पर सुदूर चांगो गांव में जन्मीं आंगमो की आठ साल की उम्र में दृष्टि चली गयी थी। इसके बावजूद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस (महाविद्यालय) से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। वर्तमान में, वह दिल्ली में ‘यूनियन बैंक ऑफ इंडिया’ में ग्राहक सेवा सहयोगी के रूप में काम करती हैं।
उनके पिता अमर चंद ने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरी बेटी ने मुझे गौरवान्वित किया है और हम सभी उसकी उपलब्धि से बहुत खुश हैं। लेकिन हमें अभी सटीक जानकारी नहीं है और हम उसके लौटने का इंतजार कर रहे हैं।’’
आंगमो के दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने की खबर से उनके गांव के लोगों में भी खुशी की लहर दौड़ गई।
उनके रिश्तेदार यामचिन ने बताया कि आंगमो बचपन से ही साहसी और दृढ़ निश्चयी थीं।
उन्होंने कहा कि उसकी (आंगमो की) इस उपलब्धि से पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई है।
भले ही, आंगमो का सफर चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हर चुनौती को अवसर में बदल दिया।
उन्होंने पहले ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा था, ‘‘मेरी कहानी अभी शुरू हुई है, मेरी दृष्टिबाधा मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है।’’
उन्होंने कहा था, ‘‘पहाड़ की चोटियों पर चढ़ना मेरा बचपन का सपना रहा है, लेकिन आर्थिक तंगी एक बड़ी चुनौती थी। अब मैं उन सभी चोटियों पर चढ़ने का प्रयास करूंगी, जो छूट गई हैं।’’
अक्टूबर 2024 में, आंगमो 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रेक पूरा करने वाली पहली दृष्टिबाधित भारतीय महिला बन गयी थीं।
वह लद्दाख में माउंट कांग यात्से 2 (6,250 मीटर) पर चढ़ाई कर चुकी हैं। वह दिव्यांग अभियान दल की सदस्य भी थीं, जिसने केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 6,000 मीटर की ऊंचाई पर एक अनाम चोटी पर चढ़ाई की थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मन की बात’ रेडियो प्रसारण में भी उनकी उपलब्धियों का उल्लेख किया गया, जिसमें उन्होंने उनकी टीम की प्रशंसा की।
खेलों के प्रति जुनून के कारण आंगमो ने राज्य स्तर पर तैराकी में स्वर्ण पदक जीता और राष्ट्रीय स्तर की जूडो चैंपियनशिप में भाग लिया। राष्ट्रीय स्तर की मैराथन स्पर्धाओं में उनके पास दो कांस्य पदक हैं और उन्होंने तीन बार दिल्ली मैराथन, साथ ही पिंक मैराथन और दिल्ली वेदांत मैराथन में भाग लिया। वह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल भी खेल चुकी हैं।
भाषा
राजकुमार प्रशांत
प्रशांत
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