प्रयागराज, 21 अप्रैल (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान चिकित्सा जांच में विलंब के कारण दुष्कर्म पीड़िता के उत्पीड़न को गंभीरता से लिया है और कहा कि प्रदेश में सरकारी चिकित्सकों की नियुक्ति और स्थानांतरण की उचित नीति की जरूरत है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि प्रदेशभर के विभिन्न जिलों में ‘रेडियोलॉजिस्ट’ की अनुपलब्धता की वजह से दुष्कर्म पीड़िता की चिकित्सा जांच में देरी होती है।
अदालत ने कहा, ‘‘जहां कुछ जिलों में एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है, वहीं अन्य जिलों में एक से अधिक रेडियोलॉजिस्ट हैं।”
अदालत कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची पूरे प्रदेश में रेडियोलॉजिस्ट की असंगत तैनाती की कहानी बयां करती है। लखनऊ जैसे एक जिले में 78 रेडियोलॉजिस्ट हैं, जबकि अन्य जिलों में एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है। यह चिकित्सा संसाधनों के असमान वितरण के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है।”
यह टिप्पणी प्रकाश कुमार गुप्ता नाम के एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने की। प्रकाश कुमार गुप्ता के खिलाफ एक लड़की के पिता ने अपनी बेटी की उम्र 13 वर्ष बताते हुए अपहरण और दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था।
हालांकि, लड़की ने दावा किया था कि वह याचिकाकर्ता के साथ अपनी इच्छा से गई थी और बाद में उसकी उम्र 19 वर्ष साबित हुई। लेकिन लड़की की आयु को लेकर झूठे बयान की वजह से याचिकाकर्ता छह माह से जेल में है।
बाद में अदालत ने बलिया के सीएमओ को उस लड़की का अस्थीकरण परीक्षण (ऑसिफिकेशन टेस्ट) कराने का निर्देश दिया, लेकिन बलिया में रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण लड़की को वाराणसी ले जाया गया जहां स्वास्थ्य विभाग ने तकनीकी आधार पर लड़की की जांच करने से इनकार कर दिया।
विभाग ने कहा कि अदालत ने बलिया के सरकारी चिकित्सक को जांच करने का निर्देश दिया है न कि वाराणसी के चिकित्सक को।
अदालत ने कहा, “चिकित्सक अधिकार क्षेत्र की वजह से एक पीड़िता का रेडियोलॉजिकल परीक्षण करने से इनकार नहीं कर सकते।”
भाषा राजेंद्र खारी
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