पंजाब-हरियाणा के ईंट भट्ठों में धान की पराली आधारित ईंधन का उपयोग एक नवंबर से अनिवार्य: केंद्र

पंजाब-हरियाणा के ईंट भट्ठों में धान की पराली आधारित ईंधन का उपयोग एक नवंबर से अनिवार्य: केंद्र

पंजाब-हरियाणा के ईंट भट्ठों में धान की पराली आधारित ईंधन का उपयोग एक नवंबर से अनिवार्य: केंद्र
Modified Date: June 4, 2025 / 12:10 am IST
Published Date: June 3, 2025 10:42 pm IST

नयी दिल्ली, तीन जून (भाषा) वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को निर्देश दिया कि वे आगामी सर्दी के मौसम से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के बाहर के जिलों के ईंट भट्टों में ईंधन मिश्रण के हिस्से के रूप में धान की पराली आधारित ‘बायोमास पेलेट’ का उपयोग अनिवार्य करें।

ये ‘बायोमास पेलेट’ एक प्रकार के ठोस ईंधन हैं। लकड़ी, कृषि अवशेषों और अन्य चीजों को संपीडित करके उन्हें छोटे और बेलनाकार छर्रों का रूप दिया जाता है।

इस उपाय का उद्देश्य पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या से निपटना है, जो हर सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में खराब वायु गुणवत्ता के लिए प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है।

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एक आधिकारिक आदेश में सीएक्यूएम ने कहा कि धान के अवशेषों से बने बायोमास पेलेट का उपयोग कोयले के लिए एक स्वच्छ और व्यावहारिक विकल्प है जिसका उपयोग आमतौर पर ईंट भट्टों में किया जाता है।

सीएक्यूएम ने कहा कि एनसीआर से इतर पंजाब और हरियाणा के जिलों में ईंट भट्टों को एक नवंबर से चरणबद्ध तरीके से धान की पराली पर आधारित बायोमास पेलेट का उपयोग जलाने के काम में शुरू करना होगा।

आदेश में निर्दिष्ट समय-सीमा के अनुसार, ईंट भट्टों को अपने ईंधन मिश्रण में कम से कम 20 प्रतिशत धान की पराली से बने पेलेट का उपयोग करना होगा। इसके अलावा इसके उपयोग को एक नवंबर, 2026 से इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत, एक नवंबर, 2027 से बढ़ाकर 40 प्रतिशत और एक नवंबर, 2028 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाना चाहिए। यह आदेश सभी ईंट भट्टों पर लागू होगा, जिनमें ‘जिग-जैग फायरिंग’ तकनीक का उपयोग करने वाले भी शामिल हैं।

आयोग ने पहले एनसीआर में स्थित ईंट भट्टों में स्वच्छ ईंधन के उपयोग के लिए निर्देश जारी किए थे। हालांकि, यह पहली बार है कि इस तरह के आदेश को पंजाब और हरियाणा के एनसीआर से बाहर के जिलों तक बढ़ाया जा रहा है।

आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, एनसीआर में 3,000 से अधिक ईंट भट्टे संचालित होते हैं, जिनमें से अधिकांश अब भी प्राथमिक ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग करते हैं।

भाषा संतोष सुरेश

सुरेश


लेखक के बारे में

सवाल आपका है.. पत्रकारिता के माध्यम से जनसरोकारों और आप से जुड़े मुद्दों को सीधे सरकार के संज्ञान में लाना मेरा ध्येय है। विभिन्न मीडिया संस्थानों में 10 साल का अनुभव मुझे इस काम के लिए और प्रेरित करता है। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक मीडिया और भाषा विज्ञान में ली हुई स्नातकोत्तर की दोनों डिग्रियां अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए गति देती है।