उत्तराखंड : राज्यपाल ने जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्य सरकार को वापस लौटाया

उत्तराखंड : राज्यपाल ने जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्य सरकार को वापस लौटाया

उत्तराखंड : राज्यपाल ने जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्य सरकार को वापस लौटाया
Modified Date: December 17, 2025 / 09:24 pm IST
Published Date: December 17, 2025 9:24 pm IST

देहरादून, 17 दिसंबर (भाषा) उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून को और कड़ा बनाने संबंधी उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2025 को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने राज्य सरकार को वापस लौटा दिया है।

उत्तराखंड लोकभवन के सूत्रों के अनुसार, विधेयक के मसौदे की भाषा में कुछ लिपिकीय त्रुटियों के कारण राज्यपाल ने एक संदेश के साथ इसे सरकार को वापस लौटाया है।

गैरसैंण में हुए विधानसभा के मानसून सत्र में इस संशोधन विधेयक को पारित किया गया था जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया था।

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प्रदेश में 2018 से लागू धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में दूसरी बार संशोधन के लिए यह विधेयक लाया गया था। इससे पहले इस अधिनियम में पहला संशोधन 2022 में किया गया था जब पुष्कर सिंह धामी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला था।

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2025 में जबरन धर्मांतरण के लिए अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा और 10 लाख रुपये तक के भारी जुर्माने का प्रावधान है। वर्तमान में इस अपराध के लिए उत्तराखंड में अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है।

विधेयक के तहत सामान्य मामले में तीन से 10 वर्ष, संवेदनशील वर्ग से जुड़े मामलों में पांच से 14 वर्ष तथा गंभीर मामलों में 20 वर्ष या आजीवन कारावास तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है।

संशोधन विधेयक में धोखाधड़ी, प्रलोभन या दबाव से होने वाले धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए प्रावधानों को पहले से और कड़ा कर दिया गया है। प्रलोभन की परिभाषा को विस्तृत करते हुए उपहार, नकद/वस्तु लाभ, रोजगार, निःशुल्क शिक्षा, विवाह का वादा, धार्मिक आस्था को आहत करना या दूसरे धर्म का महिमामंडन, सभी को अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है ।

इसमें डिजिटल साधनों पर रोक लगाते हुए सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप या किसी भी ऑनलाइन माध्यम से धर्मांतरण हेतु प्रचार करने या उकसाने जैसे कार्यों को दंडनीय बनाये जाने का प्रावधान है।

सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार को अब विधानसभा के अगले सत्र में इसे दोबारा पारित करवाना पड़ेगा या वह इसे अध्यादेश के जरिए भी लागू कर सकती है।

भाषा

दीप्ति

रवि कांत


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