बाल ‘पॉर्न’ देखना, डाउनलोड करना पॉक्सो, आईटी कानून के तहत अपराध : उच्चतम न्यायालय

बाल ‘पॉर्न’ देखना, डाउनलोड करना पॉक्सो, आईटी कानून के तहत अपराध : उच्चतम न्यायालय

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  • Publish Date - September 23, 2024 / 11:28 AM IST,
    Updated On - September 23, 2024 / 11:28 AM IST

नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पॉर्नोग्राफी (अश्लील सामग्री) देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध हैं।

पीठ ने बाल पॉर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों पर कुछ दिशा निर्देश भी जारी किए।

उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर अपना फैसला दिया है जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गयी थी।

इससे पहले, वह उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और महज डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा आईटी कानून के तहत अपराध नहीं है।

उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। उस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पॉर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को ‘‘इतना परिपक्व’’ होना चाहिए कि वह उन्हें सजा देने के बजाय उन्हें शिक्षित करे।

उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता संगठनों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का की दलीलों पर गौर किया कि उच्च न्यायालय का फैसला इस संबंध में कानून के विरोधाभासी है।

वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद में स्थित एनजीओ ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस’ और नयी दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से अदालत में पेश हुए। ये गैर सरकारी संगठन बच्चों की भलाई के लिए काम करते हैं।

भाषा गोला सिम्मी

सिम्मी