विधवा महिला को 23 साल बाद मिला मुआवजा, रेलवे और अधिवक्ता के प्रयासों की न्यायालय ने तारीफ की
विधवा महिला को 23 साल बाद मिला मुआवजा, रेलवे और अधिवक्ता के प्रयासों की न्यायालय ने तारीफ की
नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘हम एक गरीब व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं, और कुछ नहीं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने इस बात को संज्ञान में लेते हुए यह बात कही कि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रेलवे आखिरकार एक दुखद घटना की शिकार महिला का पता लगाने और उसे 8.92 लाख रुपये का मुआवजा देने में सफल रहा, जिसने 2002 में एक ट्रेन दुर्घटना में अपने पति को खो दिया था।
इस पीठ में न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची भी शामिल रहे। पीठ ने कहा कि उस बुजुर्ग महिला को खोज पाना एक मुश्किल काम था, जिसने बिहार के एक दूरदराज के गांव में अपना घर बदल लिया था और उसके स्थानीय वकील के निधन के बाद उसका आखिरी संपर्क भी टूट गया था।
पीठ ने रेलवे और वकील फौजिया शकील के प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने विधवा की तरफ से मामले में बिना किसी शुल्क के पक्ष रखा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘इन युवा अधिवक्ता (फौजिया शकील) ने, जिन्होंने उसका केस बिना शुल्क के लड़ा, यह सुनिश्चित किया कि उसे 23 साल बाद मुआवजा मिले। हमें स्थानीय पुलिस और प्रशासन की मदद से उसे ढूंढना पड़ा और आखिरकार रेलवे उसे भुगतान करने में कामयाब रहा। हम एक गरीब व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं, और कुछ नहीं।’’
रेलवे ने अपने हलफनामे में कहा कि छह अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में, उसने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मदद से महिला संयोगिता देवी को ढूंढ लिया।
भाषा वैभव रंजन
रंजन

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