नयी दिल्ली,16 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश आशा मेनन ने शुक्रवार को कहा कि कई बार महिलाएं किसी हालात से अभिभूत हो जाती हैं और हो सकता है कि अधिक भावुक हों लेकिन उन्हें इसके लिए बुरा महसूस करने की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति मेनन ने कहा, ‘‘ कई बार हम किसी परिस्थिति से अभिभूत हो जाते हैं,जो अधिक भावुक करने वाली हो और उससे निपटना मुश्किल हो। हो सकता है कि एक महिला के तौर पर हम ज्यादा भावुक होते हों। मुझे नहीं लगता कि इसे लेकर हमें बुरा महसूस करना चाहिए…।’’
न्यायमूर्ति मेनन ने उच्च न्यायालय की ओर से आयोजित विदाई समारोह में यह बात कही,शुक्रवार को उनका कार्यालय में अंतिम दिन था। न्यायमूर्ति ने यह बात एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुए कही जब वह तीस हजारी अदालत में न्यायिक अधिकारी थीं।
न्यायमूर्ति मेनन ने कहा कि पहले वह तीस हजारी अदालत से ऐसे किसी अदालत में तबादला चाहती थीं जो उनके घर के निकट हो,ताकि वह अपने बेटे की देखभाल कर सकें। उस वक्त उनका बेटा एक वर्ष का था और अस्वस्थ था।
उन्होंने बताया कि एक दिन वह अपने बेटे को चिकित्सक के पास ले गईं थीं और इससे वह कामकाज एक घंटे बाद शुरू कर सकीं।
न्यायमूर्ति मेनन ने बताया एक कनिष्ठ अधिवक्ता को कुछ गलमफहमी हो गई और वह बार एसोसिएशन के पास चला गया,जिसके बाद सभी उनके अदालतकक्ष में एकत्र हो गए और तभी एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘ अगर आप काम नहीं कर सकतीं तो घर बैठिए।’’
न्यायमूर्ति मेनन ने कहा, ‘‘ मेरा दृढ़निश्चय था कि मैं यहीं रहूंगी और वे भी और सभी देखेंगे कि किसे कैसे काम करना आता है।’’
उन्होंने बताया कि बाद में कनिष्ठ अधिवक्ता ने उनसे माफी मांगी।
न्यायमूर्ति मेनन का जन्म 17 सितंबर 1960 को केरल में हुआ था, वह नवंबर 1986 में दिल्ली न्यायिक सेवा में शामिल हुईं। उन्हें 27 मई 2019 को दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।
भाषा शोभना माधव
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