विश्व गौरैया दिवस : संरक्षण प्रयासों से दिल्ली में गौरैया की वापसी की उम्मीदें बढ़ीं |

विश्व गौरैया दिवस : संरक्षण प्रयासों से दिल्ली में गौरैया की वापसी की उम्मीदें बढ़ीं

विश्व गौरैया दिवस : संरक्षण प्रयासों से दिल्ली में गौरैया की वापसी की उम्मीदें बढ़ीं

:   Modified Date:  March 19, 2023 / 09:18 PM IST, Published Date : March 19, 2023/9:18 pm IST

(मनीष सेन)

नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) संरक्षण प्रयासों के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि काले, भूरे और सफेद पंखों वाली छोटी सी चिड़िया एवं अपनी खास चहचाहट के लिए पहचाने जानी वाली ‘गौरैया’ फिर से अधिक संख्या में राष्ट्रीय राजधानी में नजर आने लगेंगी।

वर्ष 2012 के आसपास गौरैया दिल्ली के शहरी इलाकों से ‘लुप्त’ होने लगी थी, जिसके चलते शहर की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसे ‘राज्य चिड़िया’ घोषित किया और इनके संरक्षण के लिए कई प्रयासों की शुरुआत की गई।

तब से 11 साल बाद, गौरैया एक बार फिर लोगों को दिखाई देने लगी हैं, जो पेड़ों के आसपास उड़ रही हैं, जहां-तहां बैठी हैं और एक खिड़की से दूसरी खिड़की पर फुदक रही हैं।

राष्ट्रीय राजधानी में इस चिड़िया की बढ़ती संख्या के बावजूद विश्व गौरैया दिवस की पूर्व संध्या पर विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि शहर में गौरैया अधिक से अधिक संख्या में नजर आये, इसके लिए काफी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है और इसमें कई अड़चने भी हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज’ के सेवानिवृत्त प्राणी विज्ञानी सूर्य प्रकाश ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘वर्ष 2012 के बाद से गौरैया की संख्या में काफी सुधार हुआ है, जिसका मुख्य कारण लोगों की भागीदारी और जागरूकता है। हालांकि, आधुनिक जीवन शैली और बढ़ता बुनियादी ढांचा घरेलू गौरैया के अनुकूल नहीं हैं। इसलिए, गौरेया अधिकतर पुरानी दिल्ली, जेएनयू परिसर और वन क्षेत्रों में ही नजर आती हैं।’’

उन्होंने कहा कि बिना बालकनी एवं खिड़कियों वाली इमारतें, गौरैया के लिए घोंसले बनाने के अनुकूल स्थान, कीड़ों को खत्म करने के लिए कीटनाशकों का उपयोग और पौधारोपण की कमी गौरैया के गायब होने के कुछ प्रमुख कारण हैं।

वर्ष 2010 में 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत करने वाले ‘नेचर फॉरेस्ट सोसाइटी’ के मोहम्मद दिलावर ने कहा कि गौरैया के संरक्षण के लिए मानवीय प्रयास आवश्यक हैं।

दिलावर ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘गौरैया मनुष्य के बिना समृद्ध नहीं हो सकती। उनका घोंसला बनाना और भोजन मनुष्य और उनकी जीवन शैली पर निर्भर करता है। यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि सब कुछ कैसे एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। पौधों की कमी से कीड़ों की संख्या में कमी आई है, जिससे गौरैया के चूजों के लिए पहला भोजन विकल्प हट गया है।’’

दिलावर और उनका संगठन गौरैया के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं और लोगों को पौधों की मूल प्रजातियों को लगाने, कीटनाशकों का उपयोग न करने और अपने घरों के बाहर ‘‘घोंसले के लिए डिब्बे’’ लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

भाषा

शफीक नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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