Pora Tihar for farmers

Pola Tihar 2023: किसानों के लिए कितना महत्वपूर्ण है पोरा का तिहार, जानिए इस तिहार का खास महत्व…

Pora Tihar for farmers छत्तीसगढ़ ही नहीं किसानों का सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक पर्व पोला है। राज्यों में भी भव्यता के साथ मनाया जाता है।

Edited By :   Modified Date:  September 14, 2023 / 08:04 AM IST, Published Date : September 14, 2023/8:00 am IST

Pora Tihar for farmers : छत्तीसगढ़ ही नहीं किसानों का सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक पर्व पोला है। यह त्यौहार किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए विशेष महत्व रखता है। ‘बैल पोला’ त्योहार के दौरान, कृषि में उनके अमूल्य योगदान के लिए संपूर्ण गोजातीय वंश के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में बैलों की पूजा की जाती है। जबकि यह उत्सव छत्तीसगढ़ में प्रमुखता से मनाया जाता है, यह देश भर के कई राज्यों में भी भव्यता के साथ मनाया जाता है।

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इन राज्यों में मनाया जाता है पोला तिहार

छत्तीसगढ़ के अलावा, बैल पोला त्योहार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। यह गाय वंश के प्रति हमारी गहरी प्रशंसा व्यक्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान के रूप में कार्य करता है। पोला त्यौहार के दिन सभी क्षेत्रों के किसान अपने घरों में अपनी गायों और बैलों को सजाते हैं और मिट्टी के बर्तनों में पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन पेश करते हैं। जिनके पास खेत नहीं हैं वे भी इन उत्सवों के दौरान मिट्टी के बैलों की पूजा करके अपना सम्मान व्यक्त करते हैं।

किसानों के लिए पोला त्यौहार का महत्व

भारत जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते है। छत्तीसगढ़ में बहुत सी आदिवासी जाति एवं जनजाति रहती है। यहाँ के गाँव में पोला के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है। यहां सही के बैल की जगह मिट्टी एवं लकड़ी के बैल की पूजा की जाती है, बैल के अलावा यहाँ लकड़ी, पीतल के घोड़े की भी पूजा की जाती है।

‘बैल पोला’ त्योहार के दौरान, कृषि में उनके अमूल्य योगदान के लिए संपूर्ण गोजातीय वंश के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में बैलों की पूजा की जाती है। बता दें कि भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पोला त्योहार, खरीफ फसल के दूसरे चरण का कार्य (निंदाई गुड़ाई) पूरा हो जाने में किया जाता है।

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बैल पोला पर्व मनाने का तरीका

श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से राक्षस पोलासुर का वध कर दिया। यही कारण है कि इस दिन को पोला कहा जाने लगा। चुंकि श्री कृष्ण ने भाद्रपद की अमावस्या तिथि के दिन पोलासुर का वध किया था इसलिए पोला पर्व मनाया जाता है। आज के दिन बैलों और गायों को रस्सी से खोल दिया जाता है और उनके पूरे शरीर में सरसों का तेल और हल्दी लगाई जाती है। इसके बाद उन्हें अच्छे से नहलाया जाता है। उसके बाद सजाकर उनके गले में घंटी पहनाई जाती है। जो लोग अपने साथ बैल और गाय लेकर आते हैं उन्हें भी कॉपी के रूप में कपड़े और धातु के छल्ले दिए जाते हैं।

मान्यताएं

Pora Tihar for farmers : रात मे जब गांव के सब लोग सो जाते है तब गांव का पुजारी-बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने कोने मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जा-जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलती है। वहीं दूसरे दिन बैलों की पूजा किसान भाई कर उत्साह के साथ पर्व मनाते हैं।

 

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