Chitrakoot donkey fair: ‘लॉरेंस विश्नोई’ पर लगी सबसे महंगी बोली, 90 हजार में बिका ‘सलमान खान’, ऐतिहासिक गधा मेले में फिल्मी नामों की धूम
Chitrakoot donkey fair: यह गधा बाजार मुगल शासक औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है। कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में चित्रकूट से सेना के लिए गधे और खच्चर खरीदे जाते थे।
- परंपरा और रौनक के साथ सजा ऐतिहासिक गधा बाजार (मेला)
- कई राज्यों से व्यापारी गधों और खच्चरों को लेकर पहुंचे
- “सलमान खान” नाम का गधा 90 हजार रुपये में बिका
चित्रकूट: Chitrakoot donkey fair, सतना जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में दीपावली पर्व के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय दीपदान मेले के दौरान दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पर्व के साथ मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाला ऐतिहासिक गधा बाजार (मेला) इस बार भी अपनी पुरानी परंपरा और रौनक के साथ सज उठा।
सदियों पुराना यह मेला अपनी अनोखी पहचान और अनूठी परंपरा के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। जानकारी के अनुसार, यह गधा बाजार मुगल शासक औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है। कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में चित्रकूट से सेना के लिए गधे और खच्चर खरीदे जाते थे। उस परंपरा को आज भी यहां के व्यापारी संजोए हुए हैं।

कई राज्यों से व्यापारी गधों और खच्चरों को लेकर पहुंचे
Chitrakoot donkey fair, इस वर्ष भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत कई राज्यों से व्यापारी हजारों की संख्या में गधों और खच्चरों को लेकर पहुंचे हैं। नगर परिषद चित्रकूट द्वारा मेले की औपचारिक व्यवस्था की गई है, लेकिन मैदान में व्यवस्थाओं की पोल खुलती दिखाई दी। मेले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां गधों और खच्चरों को फिल्मी सितारों और चर्चित नामों से पुकारा जाता है। इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहा “लॉरेंस विश्नोई” नाम का खच्चर, जिसकी बोली 1 लाख 25 हजार रुपये तक पहुंची।
“सलमान खान” नाम का गधा 90 हजार रुपये में बिका
वहीं, “सलमान खान” नाम का गधा 90 हजार रुपये में बिका और “शाहरुख खान” ने 80 हजार रुपये में नया मालिक पाया। कई अन्य जानवरों को कैटरीना, माधुरी और चंपकलाल जैसे नाम दिए गए, जिन पर खरीदारों ने जमकर बोली लगाई। लेकिन रौनक के बीच कई परेशानियां भी छिपी हैं। मंदाकिनी किनारे लगने वाले इस मेले में गंदगी, पानी और छाया जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव नजर आया।
व्यापारियों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही के चलते उन्हें भारी असुविधा झेलनी पड़ रही है। व्यापारियों ने बताया कि मेले में आने वाले प्रत्येक व्यापारी से 600 रुपये प्रति जानवर एंट्री शुल्क और 30 रुपये प्रति खूंटा वसूला जा रहा है, जबकि बदले में किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दी जा रही। यहां तक कि सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर होमगार्ड तक नहीं तैनात हैं।
स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि प्रशासन ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो यह सदियों पुरानी परंपरा समाप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी। फिलहाल, चित्रकूट का यह गधा मेला अभी भी रौनक से भरा हुआ है, लेकिन इस रौनक के पीछे छिपी अव्यवस्था, उपेक्षा और प्रशासनिक उदासीनता इसकी चमक को धीरे-धीरे फीका कर रही है।
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