लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अंतिम चरण का मतदान 19 मई को होना है। इस चरण में मध्यप्रदेश की 8 सीटों पर भी मतदान होना है, जिनमें से एक है खरगोन लोकसभा सीट। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही खरगोन पश्चिम निमाड़ के रूप में अस्तित्व में आ गया था। यह मध्य प्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है। यह शहर नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित है।
इस लोकसभा सीट पर भाजपा ने सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र सिंह पटेल पर उम्मीद लगाई है। जबकि कांग्रेस ने डॉ. गोविंद मुजाल्दा को टिकट दी है। 2014 में भाजपा के सुभाष पटेल ने करीब तीन लाख मतों से जीत हासिल की थी। बता दें कि खरगोन लोकसभा सीट संघ प्रभाव वाली है। बीते तीन चुनाव में इस सीट पर बीजेपी को एकतरफा जीत मिली है. लेकिन विधानसभा परिणाम ने इस सीट की तस्वीर भी बदलकर रख दी है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहां सेंध लगाने में कामयाब रही है। यहां की आठ विधानसभा सीट में से छह सीटें कांग्रेस ने जीती थ। जबकि महज एक सीट भाजपा और एक सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया था।
खरगोन लोकसभा क्षेत्र के तहत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। इनमें देपालपुल, इंदौर 3,राऊ, इंदौर 1, इंदौर 4, सनवेर, इंदौर 5, इंदौर 2 यहां की विधानसभा सीटें हैं। इन 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है।
यहां के चुनावी इतिहास पर नजर डाले तो खरगोन लोकसभा क्षेत्र में मुख्य तौर पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है। हालांकि पिछले दस सालों से खरगोन संसदीय क्षेत्र पर बीजेपी का राज रहा है। खरगोन लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1962 में हुआ। फिलहाल यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। पहला संसदीय चुनाव साल 1962 में हुआ। खरगौन लोकसभा सीट से 1962 में भारतीय जनसंघ, 1967 में कांग्रेस, 1971 में दोबारा जनसंघ, 1977 में भारतीय लोकदल, 1980 और 1984 में कांग्रेस, 1989-1998 में लगातार चार बार बीजेपी जीती। इसके बाद 1999 में कांग्रेस, 2004 में बीजेपी, 2007 में कांग्रेस, 2009 में फिर से बीजेपी ने खरगोन में वापसी की। फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है.सुभाष पटेल यहां के सांसद हैं। बीजेपी को यहां पर 7 चुनाव में जीत मिली है तो कांग्रेस को 5 चुनाव में जीत मिली है।
जिस समाज की बहुलता की वजह से यह सीट आरक्षित की गई, उसी के 27 फीसदी लोग यहां सिकलसेल जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। वर्षों से स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने की मांग यहां उठती रही है बावजूद इसे किसी भी राजनीतिक दल ने मुद्दा नहीं बनाया। संसदीय क्षेत्र औद्योगिकीकरण के लिहाज से पिछड़ा हुआ है। साथ ही पलायन भी यहां एक बड़ा मसला है। कांग्रेस फसल बीमा योजना में गड़बड़ी को चुनावी मुद्दा बनाए हुए है तो बीजेपी कर्जमाफी को छलावा बताते हुए मतदाताओं के पास जा रही है।
2009 में परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई। यहां पर पिछले 2 चुनावों में बीजेपी की जीत मिली है। खरगोन में भी भाजपा ने सांसद सुभाष पटेल को बदल कर गजेंद्रसिंह पटेल को पार्टी का नया चेहरा बनाया है। उनका मुकाबला कांग्रेस के डा. गोविंद मुजाल्दा से है जिनके साथ मजबूत आदिवासी वोट बैंक खड़ा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक खरगोन की जनसंख्या 26,25,396 है। यहां की 84.46 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 15.54 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। यहां अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या अच्छी खासी है। खरगोन में 53.56 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है और 9.02 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है. यहां पर 17,61,005 मतदाता हैं।
विजयी प्रत्याशी : सुभाष पटेल (बीजेपी) 649354 (56.34 फीसदी) वोट
फर्स्ट रन अप : रमेश पटेल (कांग्रेस) 391475 (33.97 फीसदी) वोट मिले थे
सेकंड रनर अप : आम आदमी पार्टी – 2.71 फीसदी वोट
विजयी प्रत्याशी : मक्कन सिंह (बीजेपी) 351296 (46.19 फीसदी) वोट
फर्स्ट रनर अप : बालाराम बच्चन (कांग्रेस) 317121 (41.7 फीसदी) वोट
सेकंड रनर अप : सीपीआई 4.19 फीसदी वोट
कुल वोटर्स : 17,03,271
पुरुष : 8,66,897
महिला : 8,36,374
कुल मतदान : 67.67 %