Vidisha Lok Sabha Elections 2019 : विदिशा की लड़ाई में कौन बनेगा विजेता, क्या भाजपा के गढ़ में जीत का बिगूल फूंकेगी कांग्रेस ? | Vidisha Lok Sabha Elections 2019 : Vidisha Lok sabha Constituency : BJP VS Congress

Vidisha Lok Sabha Elections 2019 : विदिशा की लड़ाई में कौन बनेगा विजेता, क्या भाजपा के गढ़ में जीत का बिगूल फूंकेगी कांग्रेस ?

Vidisha Lok Sabha Elections 2019 : विदिशा की लड़ाई में कौन बनेगा विजेता, क्या भाजपा के गढ़ में जीत का बिगूल फूंकेगी कांग्रेस ?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:59 PM IST, Published Date : May 10, 2019/12:41 pm IST

मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट देश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यहां की सांसद हैं। कांग्रेस इस सीट पर हमेशा से ही कमजोर रही है। यहां से राज्य के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी सांसद रह चुके हैं। सुषमा स्वराज यहां से लगातार दो चुनाव जीत चुकी हैं। 2014 के पहले 2009 के चुनाव में भी उन्होंने यहां पर जीत हासिल की थी। इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं, जिनमें भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बासौदा, बुधनी, इछावर व खातेंगांव शामिल हैं।

विदिशा में आमने-सामने

भाजपा ने सुषमा की जगह इस बार रमाकांत भार्गव को मौका दिया है। शिवराज के करीबी माने जाने वाले भार्गव का यह पहला लोकसभा चुनाव है। फिलहाल वे जिला सहकारी बैंक और एपेक्स बैंक के अध्यक्ष हैं। विदिशा की जनता में उनकी छवि सरल स्वभाव वाले नेता की है। ब्राह्मण वर्ग से आने वाले भार्गव के लिए यहां जातीय और राजनीतिक समीकरण भी मोटेतौर पर पक्ष में दिख रहे हैं।

कांग्रेस ने बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए इछावर के विधायक रहे शैलेंद्र पटेल को मैदान में उतारा है। पटेल यूथ कांग्रेस में प्रदेश महामंत्री, जिलाध्यक्ष और लोकसभा अध्यक्ष भी बने। 2013 में राजस्व मंत्री और 28 सालों से विधायक रह चुके बीजेपी के करण सिंह वर्मा को महज 744 वोटों से हराया था। हालांकि 2018 के चुनाव में वर्मा ने उन्हें फिर हरा दिया।

लोकसभा चुनाव 2019 के प्रमुख मुद्दें

यहां बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। लोग यहां अपने पढ़े लिख नौजवानों की भविष्य को लेकर चिंतित हैं। परिजन तो बस यही चाहते हैं की बच्चों को अच्छी नौकरी मिल जाए। नोटबंदी-जीएसटी को लेकर यहां भी नाराजगी देखी गई है।

सामाजिक ताना-बाना

विदिशा मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। यह शहर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है।

जातीय समीकरण

2011 की जनगणना के मुताबिक विदिशा की जनसंख्या 2489435 है। यहां की 81.39 फीसदी आबादी ग्रामीण और 18.61 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। विदिशा में 18.68 फीसदी लोग अनुसूचित जाति के हैं और 5.84 अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में यहां पर कुल 16,34,370 मतदाता थे। इनमें से 7,61,960 महिला मतदाता और 8,72,410 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 65.68 फीसदी मतदान हुआ था।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

विदिशा में पहला चुनाव 1967 में हुआ पहले चुनाव में भारतीय जनसंघ के एस.शर्मा ने जीत हासिल की थी। इसके अगले चुनाव में भी भारतीय जनसंघ को ही जीत मिली। नामी मीडिया हाउस इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के फाउंडर रामनाथ गोयनका इस सीट से जीतकर सांसद बने।

कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ दो बार ही जीतने में कामयाब रही है। उसको पहली सफलता यहां पर 1980 के चुनाव में मिली, जब भानु प्रताप कृष्ण गोपाल ने बीजेपी के राघवजी को हराया था। इसके अगले चुनाव 1984 में भी भानुप्रताप ने राघवजी को हराया और दूसरी बार कांग्रेस को इस सीट पर सफलता दिलाई। हालांकि राघवजी ने इसके अगले चुनाव में बदला लिया और भानुप्रताप को 1 लाख से ज्यादा वोटों से हराया।

साल 1991 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी यहां से मैदान में उतरे। यहां की जनता ने उनको निराश नहीं किया। वाजयेपी ने कांग्रेस के भानुप्रताप शर्मा को 1 लाख से ज्यादा वोटों से मात देकर यहां के सांसद बने। बीजेपी ने इसके अगले चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को यहां से टिकट दिया। इस बार भी विदिशा की जनता ने इस बार बीजेपी उम्मीदवार को ही चुना और पहली बार शिवराज इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे। वह इसके बाद लगातार 3 बार यहां के सांसद चुने गए।

1991, 1996, 1998 और 2004 में शिवराज ने लगातार विदिशा सीट पर जीत हासिल की। और हर बार उन्होंने कांग्रेस के अलग-अलग उम्मीदवार को पटखनी दी। 2006 में राज्य का सीएम बनने के बाद शिवराज को यह सीट छोड़नी पड़ी। और यहां पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में बीजेपी ने यहां से रामपाल सिंह को उतारा। रामपाल के सामने कांग्रेस के राजश्री रुद्र प्रताप सिंह थे। रामपाल ने रुदप्रताप को इस चुनाव में करारी मात दी। इसके अगले चुनाव 2009 में बीजेपी ने यहां से दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा।

लोकसभा चुनाव 2009 का जनादेश

2009 के चुनाव में भी सुषमा स्वराज को जीत मिली थी। उन्होंने सपा के चौधरी मुनाब्बर सलीम को 3.50 लाख से ज्यादा वोटों से करारी मात दी। सुषमा को 4,38,235(78.8 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं चौधरी मुनाब्बर सलीम को सिर्फ 48,391(8.7 फीसदी) वोट मिले।

लोकसभा चुनाव 2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज ने कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह को हराया। बता दें लक्ष्मण सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के भाई हैं। इस चुनाव में सुषमा स्वराज को 7,14,348(66.55 फीसदी) वोट मिले. वहीं लक्ष्मण सिंह को 3,03,650(28.29 फीसदी) वोट मिले. सुषमा स्वराज की जीत 4 लाख से ज्यादा वोटों से हुई थी

 

 
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