The Big Picture With RKM: जहरीले बोल पर सियासत आउट ऑफ कंट्रोल! महाराष्ट्र में औरंगजेब और गद्दार की एंट्री, चुनाव के बीच आबादी की रिपोर्ट के मायने क्या?

अब ऐसा लगता है कि विभिन्न दलों के बीच एक अनदेखा सा कंपटीशन है। हर दल के बड़े-बड़े नेता ऐसे बोल-बोल रहे हैं जिसको सुनकर हैरत हो रही है। बरसों पहले के बोल पर अभी जवाब दिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि इसे कैसे लिया जाए ?

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  • Publish Date - May 9, 2024 / 11:53 PM IST,
    Updated On - May 10, 2024 / 12:00 AM IST

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The Big Picture With RKM: रायपुर: चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं का एक दूसरे पर बोल देना, कुछ कह देना, यह तो एक आम सी बात है। सैम पित्रोदा ने जब कुछ कहा तो उनको लगा कि कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि विभिन्न दलों के बीच एक अनदेखा सा कंपटीशन है। हर दल के बड़े-बड़े नेता ऐसे बोल-बोल रहे हैं जिसको सुनकर हैरत हो रही है। बरसों पहले के बोल पर अभी जवाब दिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि इसे कैसे लिया जाए ?

आज का जो पूरा चुनाव प्रचार है, वह बदजुबानी की भेंट चढ़ गया।सबसे पहले महाराष्ट्र के अमरावती की सांसद और तेलुगु की अभिनेत्री नवनीत राणा कूदी, जो कि हैदराबाद में चुनाव प्रचार करने के दौरान 12 साल पुराने अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान का जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर तुमने 15 मिनट मांगे थे तो हमें 15 सेकंड दे दो, जब अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान को ही किसी ने अप्रिशिएट नहीं किया, तब भी यह कहा गया था कि आखिर यह किस तरह की भाषा है ? कि 15 मिनट पुलिस अगर हट जाए तो…जो भी उन्होंने बयान दिया था, उसकी किसी ने सराहना नहीं की थी। बल्कि उल्टे उन पर केस भी दर्ज हुआ था, तो फिर नवनीत राणा के आज के बयान को कैसे ठीक माना जा सकता है। यह जो भड़काने वाली भाषा है इसका चुनाव प्रचार में कोई स्थान नहीं है।

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उसके बाद उनके बड़े भाई असदुद्दीन ओवैसी भी आ गए, उन्होंने भी कहा, ठीक है चैलेंज एक्सेप्ट कर लिया। तो यह कोई मरने मारने का युद्ध नहीं चल रहा है बल्कि यह चुनाव है, जहां जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव हो रहा है ना कि किसी युद्ध के लिए इसलिए इस तरह की भाषा सही नहीं है। सबसे बड़ी बात यह की तीनों ही बयान आज महाराष्ट्र से आए, प्रियंका चतुर्वेदी भी शिवसेना की जो सैनिक हैं वह भी कूद पड़ी और उन्होंने वहां के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र श्रीकांत शिंदे जो कि सांसद भी हैं, उन्हें भी कह रही हैं कि उनके माथे पर लिखा है कि मेरा बाप गद्दार है। क्योंकि एकनाथ शिंदे ने एक शिवसेना से अलग होकर अलग पार्टी बनाई थी। आखिर प्रियंका चतुर्वेदी की यह किस तरह की भाषा है, आप महाराष्ट्र में पढ़े लिखे लोग हैं और और इस तरह के बयान दे रहे हैं।

दिन खत्म होते-होते जो अपनी अंतिम आहुति संजय राउत ने दे दी, संजय राउत शिवसेना सांसद हैं, वह भी उद्धव ठाकरे गुट से आते हैं लेकिन उनकी जो भाषा थी, वह तो बोलने लायक भी नहीं है, उन्होंने कहा कि जिस तरीके से औरंगजेब गुजरात में पैदा हुए थे और उनकी कब्र उन्होंने महाराष्ट्र में खोद दी और उनको दफना दिया, मोदी की भी वैसी ही तुलना की गई, जिसे हम अपने शब्दों में कह नहीं सकते। अब यह इस तरह की भाषा चुनाव प्रचार में सही नहीं है। यह चुनाव प्रचार गलत दिशा में जा रहा है, इस तरह की भाषा से कभी किसी को फायदा नहीं होता है, ना ही सत्ता पक्ष, न ही विपक्ष को। उनको इस तरह की भाषा का चुनाव प्रचार में उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसी भाषा किसी को भी पसंद नहीं है, ना ही कोई कैडर उत्साहित होता है, ना ही कोई समर्थक और ना ही जनता। आप वीडियो में भी देख सकते हैं कि संजय राउत के पीछे जो लोग खड़े थे, उन लोगों ने भी उनकी इस भाषा को अप्रिशिएट नहीं किया तो फिर इस तरह की भाषा आखिर क्यों? नेताओं को चाहिए कि ऐसे मुद्दों पर बात करें जो लोगों को बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देते हो, अगर इस तरह के मुद्दों पर बात हो तो यह चुनाव सकारात्मक बनेगा और इससे कुछ निकाल कर आएगा और जनता को भी ऐसे मुद्दे मिलेंगे जिससे वह अपने सही नेता का चुनाव कर सकेगी।

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चुनावी के बीच आबादी की रिपोर्ट संयोग या प्रयोग?

इसके अलावा आज चुनाव के बीच आबादी को लेकर के एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा जा रहा है कि मुसलमानों की आबादी बहुत ज्यादा बढ़ गई है, हिंदुओं की आबादी घट गई है, अब बीच चुनाव में इस तरह की रिपोर्ट क्या संयोग है या कोई सियासी प्रयोग है ।

दरअसल, यह इकोनामिक एडवाइजरी काउंसिल है जो कि प्रधानमंत्री के लिए अलग से बनी हुई है। उसमें दो तीन इकोनॉमिस्ट शामिल हैं। यह जो स्टडी आई है यह पूरी ऐसी थी कि 1950 से लेकर 2015 तक केवल भारत में ही नहीं कई देशों में स्टडी करना था कि वहां डेमोग्राफी में किस तरह से परिवर्तन आया है। अब यह जो सिलेक्टिव रिपोर्ट लीक किया गया है, चुनाव के बीच में जिसमें बताया गया है कि हिंदुओं की आबादी करीब 8 फ़ीसदी घट गई और मुसलमान की आबादी करीब 43 फ़ीसदी बढ़ गई। अब ऐसे में जो हिंदू मुसलमान के बीच की जो सियासत है और सही नहीं है। अच्छे मुद्दों पर लड़ना चाहिए हालांकि हमको यह समझना पड़ेगा कि हिंदू मुसलमान के बीच बहस के लिए दोनों ही पार्टियों बराबर जिम्मेदार हैं। चाहे वह कांग्रेस हो चाहे हो बीजेपी हो। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि कोई एक दल इस चीज को बार-बार ला रहा है, क्योंकि कांग्रेस कुछ बोलती है तो बीजेपी उसका जवाब देती है और बीजेपी कुछ बोलती है तो कांग्रेस उसका जवाब देती है।

मेरा यह मानना है कि हिंदू मुसलमान की राजनीति इस देश में खत्म होना चाहिए। हम सब इस देश के नागरिक हैं, जितना हमारा अधिकार है उतना उनका भी अधिकार है, बाकी भी जातियों का उतना ही अधिकार है। इस तरह के सिलेक्टिवली चुनाव के दौरान लीक हो वह एक जरूर संदेह पैदा करते हैं कि उसका असल कारण क्या है और असल कारण हम सबको समझ में आता है। फिलहाल देखना होगा कि आगे क्या होता है। अभी भी चुनाव में चार चरण बचे हैं और यह देखना होगा कि किस तरह की बातें आती हैं या इसी तरह की लड़ाई में पूरा समय व्यतीत हो जाएगा या फिर वह भी सुना कहा जाएगा जो जनता चाहती है।