टिकट की आस..वंशवाद की फांस! क्या बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांगना गलत है?

टिकट की आस..वंशवाद की फांस! क्या बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांगना गलत है? Is it wrong to ask for tickets for sons and daughters?

टिकट की आस..वंशवाद की फांस! क्या बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांगना गलत है?
Modified Date: January 16, 2023 / 11:56 pm IST
Published Date: January 16, 2023 11:56 pm IST

सुधीर दंडोतिया/भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर वंशवाद की चर्चा तेज हो गई है। बीजेपी के कद्दावर नेता गौरीशंकर बिसेन ने अपनी बेटी को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान किया है। इस पर कांग्रेस ने बीजेपी पर कथनी और करनी में अंतर होने का आरोप लगाया तो बीजेपी नेता कन्नी काटते हुए दिखे। आज की डिबेट का यही विषय है- टिकट की आस, वंशवाद की फांस। सवाल है कि क्या बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांगना गलत है? और ऐसा है तो वंशवाद रोकने के लिए सियासी पार्टियों का क्या प्लान है।

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चुनावी मौसम में टिकट के दावेदार सक्रिय होने लगे हैं। दावेदारों का एक तबका ऐसा भी है, जिन पर वंशवाद के आरोप लग रहे हैं। ऐसे ही पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन ने खुद की जगह नई पीढ़ी को मौका देने की बात कही है। बिसेन के लिए नई पीढ़ी से मतलब उनकी बेटी मौसम बिसेन से है।

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गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा पहले भी कर चुके हैं लेकिन उस समय बीजेपी ने इसे उनका व्यक्तिगत बयान बताकर पल्ला झाड़ लिया था। इस बार बीजेपी नेता बचाव की मुद्रा में हैं और कांग्रेस इसे बीजेपी का दोहरा चरित्र बता रही है।

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हालांकि गौरीशंकर बिसेन अकेले बीजेपी नेता नहीं है, उनके अलावा कई नेता अपने बेटे-बेटियों को सियासत में लाना चाहते है। नागौद विधानसभा क्षेत्र के विधायक नागेंद्र सिंह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी उम्र 80 साल है। पार्टी के गलियारों में सुना जा रहा है कि नागेंद्र सिंह अपने दोनों बेटों या फिर भतीजे में से किसी एक के लिए आगामी चुनाव में दावेदारी करेंगे। मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह भी राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। देवेंद्र को अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा। ग्वालियर से ही पूर्व सांसद प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा भी अपना पैर राजनीति के अखाड़े में जमाने में लगे हैं। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं। प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य सुकर्ण अपने पिता की तरह लोगों के बीच जगह बना रहे हैं।इसके अलावा बीजेपी में ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है, जिनके परिजन राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं- इनमें पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार, उम्रदराज मंत्रियों में गोपाल भार्गव अपने बेटे अभिषेक, दिवंगत भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह, मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य शाह, विधायक सुलोचना रावत के बेटे विशाल रावत, पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह शामिल हैं। कांग्रेस में भी ऐसे नेताओ की लंबी फेहरिस्त है- इनमें पूर्व मंत्री बिजेंद्र सिंह राठौर के बेटे नितेन्द्र राठौर, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया , कांग्रेस के दिग्गज नेता महेश जोशी के बेटे पिंटू जोशी, पूर्व मंत्री पी सी शर्मा के बेटे शिवी शर्मा , नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह के भतीजे अनिरुद्ध प्रताप सिंह, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के बेटे नीर प्रजपति, प्रेम चंद गुडू के बेटे अजीत और बेटी रीना जैसे कई नाम है।

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पीएम नरेंद्र मोदी वंशवाद को लेकर अक्सर कांग्रेस और गांधी परिवार की आलोचना करते रहे हैं। अब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वंशवाद वाली छवि तोड़ने की चुनौती है और बीजेपी के सामने भी कथनी और करनी साबित करने का चैलेंज है।

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