धर्म और सियासत का मेल.. फिर से ध्रुवीकरण का खेल! क्या चुनाव जीतने धर्म ही एक मात्र उपाय है?
धर्म और सियासत का मेल.. फिर से ध्रुवीकरण का खेल! Parties taking help of religion to win elections in Madhya Pradesh
(रिपोर्टः नवीन कुमार सिंह) Parties taking help of religion भोपालः आज के राजनीतिक परिदृश्य में चुनाव जीतने के लिए हर दल हर तरीके के हथकंडे अपनाता है। चुनावी मुद्दों से लेकर जनता के इमोशन्स को भी छूने की कोशिश करता है और यही वजह है कि इस निकाय चुनाव में धर्म और सियासत का मेल होता हुआ दिखाई दे रहा है और सवाल उठ रहा है कि क्या फिर से धुव्रीकरण का खेल खेला जा रहा है?>>*IBC24 News Channel के WhatsApp ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<
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Parties taking help of religion : 23 का सेमीफाइनल कहे जा रहे निकाय चुनाव के लिए प्रचार चरम पर है. जीत हासिल करने सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस चुनाव में एक बात कॉमन है कि बीजेपी, कांग्रेस और AIMIM तीनों ही धर्म का सहारा ले रहे हैं। कोई अपना वजूद तलाश रहा है तो कोई अपनी जमीन मजबूत करने में जुटा है तो कोई अपनी विरासत को बचाने की कोशिश कर रहा है।
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बात करें कांग्रेस की तो पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ मंगलवार को महाकाल की शरण में पहुंचे। भस्माआरती में शामिल हुए। दर्शन और पूजा के बाद उज्जैन से कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी महेश परमार के लिए प्रचार किया। इस दौरान बीजेपी की सरकार पर कमलनाथ जमकर बरसे। बीजेपी सरकार की नीयत पर सवाल भी खड़े किए।
दूसरी ओर बीजेपी ने भी एक कदम आगे बढ़कर हनुमान चालीसा की पाठ की शुरुआत कर दी है। युवा मोर्चा ने बाइक रैली की शुरुआत के पहले सैंकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ किया। मकसद साफ है कि हार्डकोर हिंदुत्व के जरिए बीजेपी युवाओं के दिलों में जगह बनाने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर निकाय चुनाव में AIMIM के चीफ असद्दुदीन ओवैसी की भी एंट्री हो गई है। ओवैसी मंच से बीजेपी कांग्रेस पर गरज रहे हैं। ओवैसी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश मे हैं। इसलिए बीजेपी के बजाए ओवैसी का निशाना कांग्रेस पर ज्यादा है। हालांकि चुनावी सीज़न में कांग्रेस का मंदिर दर्शन कार्यक्रम बीजेपी को खटक रहा है।
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कुल मिलाकर 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले एमपी में धर्म और सियासत का मेल फिर शुरू हो गया है. ओवैसी जहां निकाय की बिसात पर माइनॉरिटी वोट बैंक को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं. तो बीजेपी हार्डकोर हिंदुत्व के एजेंडे पर खुल कर आगे बढ़ रही है। जबकि कांग्रेस प्रो माइनॉरिटी की इमेज से पीछा छुड़ाना चाह रही है। ऐसे में एक बार फिर ये सवाल खड़ा होने लगा है कि चुनाव जीतने के लिए क्या वाकई धर्म का सहारा लेना ही आखिरी और एक मात्र उपाय है।

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