अपने-अपने अंबेडकर! महापुरुषों को अपना बताने की होड़, भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर भाजपा-कांग्रेस ने एक-दूसरे को घेरा

अपने-अपने अंबेडकर! महापुरुषों को अपना बताने की होड़ : Your Ambedkar! Competition to tell great men as their own

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  • Publish Date - December 7, 2021 / 12:05 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:58 PM IST

भोपालः देश में महापुरूषों पर किसका अधिकार है, कौन महापुरूष किया ज्यादा है और किसने उनके नाम का कितना इस्तेमाल किया है, इसे लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। कांग्रेस गांधी, नेहरु, शास्त्री, पटेल के नेतृत्व को अपना गौरवशाली इतिहास बताती है तो बीजेपी श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय समेत अब तक गुमनाम रहे या कमतर चर्चा में रहे महापुरूषों को याद कर उन्हें आदर्श के तौर पर स्थापित करने की मुहिम चला रही है। ये होड़ ये प्रतिस्पर्धा देश के संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेड़र की पुण्यतिथि के आयोजनों पर भी दिखाई दी। भाजपा ने पहले सरदार पटेल तो अब संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के बहाने कांग्रेस को जमकर घेरा है, जबकि कांग्रेस का आरोप है भाजपा आदिवासी हित का ढोंग कर रही है।

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देश के संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर की पुण्यतिथि पर ये दोनों तस्वीरें बताती हैं कि सत्तापक्ष और विपक्ष ने कैसा बाबा साहब को याद किया, लेकिन इन्हीं तस्वीरों के साथ आने वाले बयानों ने ये भी साफ किया कि कैसे दोनों ही पार्टियां अंबेडकर के जरिए दलित वोट बैंक साधने की जद्दोजहद में जुटी हैं। हालांकि इस दिन भी सियासी आरोपों के बाण चले हैं। बीते दशकों मे अंबेडकर पर अपना हक जता रही कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी सिर्फ वोट बैंक के खातिर ही दलितों के करीबी होने का दिखावा कर रही है।।

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वैसे, दलित प्रेम प्रदर्शन में कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता। बीजेपी सरकार ने पीएम मोदी की मौजूदगी में 15 नवंबर को ही जनजातीय सम्मेलन किया। 4 दिसंबर को टंट्या मामा की पुण्यतिथि पर इंदौर में बड़ा कार्यक्रम किया गया। बीजेपी के तमाम नेता अपने दौरे के दौरान दलित वर्ग के किसी व्यक्ति के यहां भोजन करते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस संगठन दलितों के साथ पंचायत करने की योजना बना रही है। कांग्रेस प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में आदिवासी सम्मेलन करने वाली है। अपने सदस्यता अभियान के दौरान भी कांग्रेस का दलित वर्ग पर फोकस है। कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने पटवार किया कि आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए दलितों का इस्तेमाल ही किया है।

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अब जरा आदिवासियों-दलितों के प्रति इस प्रेम के पीछे के सियासी गणित को भी समझिए। प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग के 15 फीसदी जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग के 22 फीसदी वोट हैं यानि प्रदेश में 37 प्रतिशत वोट दलितों के हैं। सीटों के लिहाज से देखे तो विधानसभा की 82 सीटो पर दलित समुदाय प्रभावी भूमिका में है, यानि एक तिहाई से ज्यादा सीटों पर ये दोनों वर्ग निर्णायक हैं। इसके अलावा डॉ भीमराव अंबेडकर को अपना बताकर पड़ोसी राज्य यूपी और पंजाब चुनाव में भी पार्टी अपनी सियासी जमीन पक्की रखना चाहती है।