भागवत ने स्वदेशी और स्वावलंबन की वकालत की; हिंदू समाज को समावेशी बताया
भागवत ने स्वदेशी और स्वावलंबन की वकालत की; हिंदू समाज को समावेशी बताया
(तस्वीरों के साथ)
नागपुर, दो अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि हिंदू समाज की शक्ति और चरित्र एकता तथा विकास की गारंटी देते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह ‘हम और वे’ की विभाजनकारी मानसिकता से मुक्त एक समावेशी शक्ति है।
भागवत ने यहां रेशिमबाग में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए ‘स्वदेशी’ और ‘स्वावलंबन’ की वकालत की। उन्होंने आर्थिक स्थिति पर कहा कि वैश्विक अंतरनिर्भरता बाध्यता नहीं बननी चाहिए तथा स्वदेशी (स्वदेशी संसाधनों का उपयोग) और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा कि हालांकि आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन वैश्विक आर्थिक प्रणाली की खामियां उजागर हो रही हैं, जिनमें अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण और पर्यावरण क्षरण शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले के बाद अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं से भारत के साथ उनकी मित्रता के स्वरूप और प्रगाढ़ता का पता चला।
यह रैली ऐसे समय में हुई जब आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे।
भागवत ने एक-दूसरे के प्रति सौहार्दपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार का आह्वान किया तथा नागरिकों से दूसरों की आस्थाओं, प्रतीकों या पूजा स्थलों का अनादर नहीं करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू समाज एक जिम्मेदार समाज है। यहां ‘हम’ और ‘वे’ का विचार कभी नहीं रहा। एक विभाजित समाज टिक नहीं सकता और हर व्यक्ति अपने आप में अनोखा है। आक्रमणकारी आए और गए, लेकिन हमारी जीवन-पद्धति कायम रही। हमारी अंतर्निहित सांस्कृतिक एकता ही हमारी शक्ति है।’’
भागवत ने कहा, ‘‘हिंदू समाज ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) के महान विचार का संरक्षक है।’’
उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति में सामाजिक एकता सबसे महत्वपूर्ण कारक है, विशेष रूप से भारत में, जो भाषाओं, धर्मों और जीवन शैलियों में व्यापक विविधता से परिभाषित होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय परंपराओं के अनुसार, सभी का स्वागत है… हम उन्हें ‘अन्य’ के बजाय अपना मानते हैं।’ उन्होंने कहा कि अलग-अलग पहचानों का सम्मान किया जाता है, लेकिन उन्हें ‘‘विभाजन का कारण नहीं बनना चाहिए’’ और एक राष्ट्र के रूप में बड़ी पहचान सर्वोच्च है।
भागवत ने ‘‘कानून को अपने हाथ में लेने’’ या हिंसा में शामिल होने की प्रवृत्ति की भी निंदा की।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को कानून के अनुसार और बिना किसी पक्षपात के काम करना चाहिए। उन्होंने ‘‘समाज के अच्छे लोगों’’ और युवा पीढ़ी से सतर्क रहने का आह्वान किया।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं से भारत के साथ उनकी मित्रता के स्वरूप और प्रगाढ़ता का पता चला।
उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हवाला देते हुए कहा कि आतंकवादियों ने सीमा पार कर जम्मू कश्मीर के पहलगाम में धर्म पूछकर 26 भारतीयों की हत्या कर दी, जिस पर भारत ने कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस हमले से देश में भारी पीड़ा और आक्रोश फैला तथा भारत ने इसका करारा जवाब दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘इस हमले से देश का हर व्यक्ति व्यथित हो गया। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी की और इसका कड़ा जवाब दिया। इसके बाद नेतृत्व का दृढ़ संकल्प, हमारे सशस्त्र बलों का पराक्रम और समाज की एकता स्पष्ट रूप से दिखाई दी।’’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक देश को मित्रों की जरूरत होती है लेकिन उसे अपने आसपास के माहौल के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए।
भागवत ने कहा, ‘‘हमारे दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और आगे भी इन्हें बनाए रखेंगे, लेकिन जब बात हमारी सुरक्षा की आती है तो हमें ज़्यादा सावधान, ज़्यादा सतर्क और मजबूत होने की जरूरत है। पहलगाम हमले के बाद विभिन्न देशों के रुख से यह भी पता चला कि उनमें से कौन हमारे मित्र हैं और किस हद तक।’’
भागवत ने भारत के पड़ोस में ‘‘अशांति’’ को लेकर भी चिंता व्यक्त की।
उन्होंने भारत के पड़ोस में अशांति को सरकारों और समाजों के बीच दूरी और सक्षम प्रशासकों की कमी से जोड़ते हुए आगाह किया कि भारत में ऐसी अशांति पैदा करने की चाहत रखने वाली ताकतें देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं।
उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश में अशांति और नेपाल में ‘जेन जेड’ प्रदर्शन पर चिंता जताते हुए कहा कि असंतोष का स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच दूरी तथा योग्य एवं जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव है।
संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘भारत में ऐसी अशांति फैलाने की चाह रखने वाली ताकतें देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं। असंतोष के स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच का विच्छेद और योग्य एवं जनता से जुड़े प्रशासकों का अभाव हैं। हालांकि, हिंसा में वांछित परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक तरह से वे हमारे अपने परिवार का हिस्सा हैं। इन देशों में शांति, स्थिरता, समृद्धि और सुख-सुविधा सुनिश्चित करना, इन देशों के साथ हमारे स्वाभाविक जुड़ाव से उपजी आवश्यकता है, जो हमारे हितों की रक्षा से कहीं आगे है।’’
भागवत ने स्वदेशी और स्वावलंबन पर जोर देते हुए कहा कि वैश्विक परस्पर निर्भरता बाध्यता नहीं बननी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा अपनाई गई शुल्क नीति पूरी तरह से उनके अपने हितों पर आधारित है और यह भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया परस्पर निर्भरता के माध्यम से संचालित होती है। ‘आत्मनिर्भर’ बनकर और वैश्विक एकता के प्रति जागरूक होकर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह वैश्विक परस्पर निर्भरता हमारे लिए बाध्यता न बने और हम अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने में सक्षम हों। स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है।’’
पर्यावरण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि वैश्विक ‘भौतिकवादी और उपभोक्तावादी विकास मॉडल’ के हानिकारक परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हिमालय को अप्रत्याशित वर्षा, भूस्खलन और सूखते ग्लेशियरों समेत तीव्र प्रतिकूल प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया की सम्पूर्ण जलापूर्ति इसी क्षेत्र से होती है।
भाषा
देवेंद्र सुभाष
सुभाष

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