पुणे, 19 दिसंबर (भाषा) अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक मुस्लिम महिला चिकित्सक का नकाब हटाने के कृत्य की शुक्रवार को कड़ी निंदा की और इसे संवैधानिक प्राधिकारी के लिए ‘‘अशोभनीय’’ करार दिया।
पटना स्थित मुख्यमंत्री सचिवालय में सोमवार को आयुष विभाग के चिकित्सकों को नियुक्ति पत्र दिये जाने के एक कार्यक्रम में कुमार ने डॉ. नुसरत परवीन का नकाब हटा दिया। इस घटना का वीडियो व्यापक रूप से प्रसारित हो गया और एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।
मुश्ताक ने पुणे पुस्तक महोत्सव से इतर पुणे साहित्य महोत्सव में कहा कि नारीवादी दृष्टिकोण से इस्लाम में ऐसा कोई धार्मिक आदेश नहीं है, जो महिलाओं को अपना चेहरा ढकने के लिए बाध्य करता हो।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी प्रथाएं इस्लामी नहीं बल्कि सांस्कृतिक हैं। कुरान और हदीस का अध्ययन करते समय मुझे ऐसा कोई निर्देश नहीं मिला, जिसमें महिलाओं को अपना चेहरा ढकने के लिए कहा गया हो। कुछ क्षेत्रों में महिलाएं आंखों को छोड़कर अपना पूरा चेहरा ढकती हैं, लेकिन यह एक सांस्कृतिक प्रथा है, धार्मिक आदेश नहीं।’’
मुश्ताक ने महिलाओं को चेहरा ढकने के लिए बाध्य करने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आचरण दोनों की निंदा करते हुए कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में व्यक्तिगत आस्था का लोकतांत्रिक मूल्यों से टकराव नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘एक धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हुए, एक मुस्लिम महिला होने के नाते, मेरा मानना है कि मेरी व्यक्तिगत आस्था का लोकतांत्रिक सिद्धांतों से टकराव नहीं होना चाहिए। इतनी सावधानी बरतनी चाहिए। चेहरा ढकने से दूसरों में आशंका पैदा हो सकती है। चेहरा व्यक्ति की पहचान है। इसे ढकने का कोई धार्मिक आदेश नहीं है, फिर भी ऐसा किया जा रहा है।’’
मुश्ताक ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नियुक्ति पत्र सौंपते समय प्राप्तकर्ता की पहचान सत्यापित करना चाहते होंगे, लेकिन उनका यह कृत्य अनुचित था।
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘हो सकता है कि उन्हें यह सत्यापित करने का अधिकार रहा हो कि नियुक्ति पत्र सही व्यक्ति को दिया जा रहा है या नहीं, लेकिन इससे महिला का नकाब उतारना उचित नहीं ठहराया जा सकता। मैं इस कृत्य की निंदा करती हूं। मुख्यमंत्री पद पर आसीन निर्वाचित जनप्रतिनिधि से ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती। उन्होंने गरिमा, लोकतांत्रिक मूल्यों और अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन नहीं किया।’’
भाषा जितेंद्र शफीक
शफीक