कोविड से हुई मौतों के लिए मुआवज़ा कोई इनाम नहीं; लापरवाही से नहीं निपटाए जा सकते मामले: अदालत

कोविड से हुई मौतों के लिए मुआवज़ा कोई इनाम नहीं; लापरवाही से नहीं निपटाए जा सकते मामले: अदालत

  •  
  • Publish Date - April 16, 2024 / 03:23 PM IST,
    Updated On - April 16, 2024 / 03:23 PM IST

मुंबई, 16 अप्रैल (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि कोविड​​​​-19 योद्धाओं की मौत के लिए मुआवजा कोई इनाम नहीं है और अनुग्रह राशि मांगने वाले मामलों को लापरवाही से नहीं निपटाया जा सकता।

अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए की। हैंडपंप सहायक के रूप में काम करने वाले उसके पति की महामारी के दौरान मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति आर एम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करने वाली महिला की अर्जी खारिज करने के महाराष्ट्र सरकार के आदेश में कुछ भी ‘गलत’ नहीं है।

गत 28 मार्च को पारित फैसले की प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई।

अदालत ने यह आदेश नांदेड़ जिले की कंचन हामशेट्टे द्वारा दायर याचिका पर पारित किया, जिन्होंने यह कहते हुए सरकार से 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मांगी थी कि उनके पति को सरकार द्वारा तैनात किया गया था जिनकी कोविड-19 से मौत हो गई।

महामारी के दौरान, राज्य सरकार ने उन कर्मचारियों के लिए 50 लाख रुपये की व्यापक व्यक्तिगत दुर्घटना राशि योजना पेश की थी जो सर्वेक्षण, रोगियों का पता लगाने, परीक्षण, रोकथाम और उपचार एवं राहत गतिविधियों से संबंधित सक्रिय ड्यूटी पर थे।

हामशेट्टे ने अपनी याचिका में कहा कि अप्रैल 2021 में जान गंवाने वाले उनके पति ऐसा कार्य कर रहे थे जो आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में आता है।

उन्होंने उच्च न्यायालय से नवंबर 2023 में उनका आवेदन खारिज किए जाने के राज्य सरकार के निर्णय को रद्द करने का आग्रह किया था।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस बात पर कोई बहस नहीं हो सकती कि ऐसे मामलों को संवेदनशीलता और सावधानी से निपटाया जाना चाहिए।

इसने कहा कि ऐसे मामलों की गहन पड़ताल की जानी चाहिए, लेकिन यह ध्यान में रखना होगा कि जो मामले अनुग्रह राशि के रूप में 50 लाख रुपये के भुगतान के योग्य नहीं हैं उन पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि इस तरह की राशि कोई इनाम नहीं है।

अदालत ने कहा कि अगर ऐसे मामलों को लापरवाही से निपटाया जाता है और मुआवजा राशि दी जाती है, तो ऐसे मुआवजे के लिए अयोग्य लोगों को करदाताओं के पैसे से 50 लाख रुपये मिलेंगे।

उच्च न्यायालय ने सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि याचिकाकर्ता का पति एक हैंडपंप सहायक था और उसे किसी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोविड-19 ड्यूटी पर तैनात नहीं किया गया था।

भाषा नेत्रपाल मनीषा

मनीषा