महाराष्ट्र में एमएसीटी ने 2004 के सड़क दुर्घटना मामले में मुआवजे की मांग खारिज की

महाराष्ट्र में एमएसीटी ने 2004 के सड़क दुर्घटना मामले में मुआवजे की मांग खारिज की

महाराष्ट्र में एमएसीटी ने 2004 के सड़क दुर्घटना मामले में मुआवजे की मांग खारिज की
Modified Date: December 24, 2025 / 05:48 pm IST
Published Date: December 24, 2025 5:48 pm IST

ठाणे, 24 दिसंबर (भाषा) महाराष्ट्र के ठाणे में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) ने वर्ष 2004 में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए 24 वर्षीय युवक के माता-पिता द्वारा दायर मुआवजा याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायाधिकरण ने कहा कि याचिका दुर्घटना के कई वर्षों बाद दायर की गई।

न्यायाधिकरण ने 11 दिसंबर को जारी अपने आदेश में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहे। साथ ही वे यह साबित नहीं कर सके कि युवक की मृत्यु दुर्घटना में लगी चोटों के कारण हुई थी या दुर्घटना में शामिल वाहन लापरवाही से चलाया जा रहा था।

यह याचिका दशरथ शेलार और उनकी पत्नी ने 10 दिसंबर, 2004 को अपने बेटे रविंद्र की मृत्यु के बाद दायर की थी।

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जानकारी के मुताबिक, रविंद्र जिस मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा था वह कल्याण फाटा-खिड़कली मार्ग पर एक कार से टकरा गई थी। हादसे के बाद रविंद्र को ठाणे स्थित एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां सात दिन बाद, इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

याचिका में मृतक के माता-पिता ने कार चालक पर लापरवाही से वाहन चलाने का आरोप लगाते हुए 25 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी।

एमएसीटी के पीठासीन अधिकारी के. पी. श्रीखंडे ने अपने आदेश में चिकित्सा साक्ष्यों में मौजूद गंभीर कमियों और पुलिस रिपोर्टों में विरोधाभासों पर प्रकाश डाला है।

न्यायाधिकरण ने कहा,“केवल इलाज के दौरान व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसकी मृत्यु दुर्घटना में लगी चोटों के कारण ही हुई थी। इसके लिए ठोस दस्तावेजी साक्ष्य आवश्यक हैं।”

याचिकाकर्ता पोस्टमार्टम रिपोर्ट या मृत्यु के कारण का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहे।

लापरवाही के मुद्दे पर न्यायाधिकरण ने कहा कि पुलिस ने शुरुआत में कार चालक के बजाय मोटरसाइकिल सवार के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

न्यायाधिकरण के अनुसार, मोटरसाइकिल सवार की यह जिम्मेदारी थी कि वह आगे चल रहे वाहन से सुरक्षित दूरी बनाए रखे ताकि आपात स्थिति में वाहन को नियंत्रित किया जा सके। ‘‘ऐसे में कार चालक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता’’

न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि यह याचिका घटना के करीब 12 साल बाद, वर्ष 2016 में दायर की गई थी जिसे उचित अवधि के भीतर दायर नहीं माना जा सकता ।

इसके बाद न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनियों सहित सभी प्रतिवादियों के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया।

भाषा

प्रचेता मनीषा

मनीषा


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