महाराष्ट्र: महिला पंचायत अधिकारी को धमकाने के मामले में सात साल बाद दो लोग दोषी ठहराए गए

महाराष्ट्र: महिला पंचायत अधिकारी को धमकाने के मामले में सात साल बाद दो लोग दोषी ठहराए गए

महाराष्ट्र: महिला पंचायत अधिकारी को धमकाने के मामले में सात साल बाद दो लोग दोषी ठहराए गए
Modified Date: December 16, 2025 / 03:27 pm IST
Published Date: December 16, 2025 3:27 pm IST

पालघर, 16 दिसंबर (भाषा) पालघर की एक अदालत ने 2018 में एक महिला पंचायत अधिकारी को धमकाने के मामले में दो लोगों को दोषी ठहराया है। हालांकि, अदालत ने आरोपियों को सरकारी कर्मचारी पर हमला करने और उनके अपमान से जुड़े गंभीर आरोपों से बरी कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायाधीश ए. आर. रहाणे ने एक दिसंबर को दिए अपने आदेश में आरोपियों को जेल भेजना अनावश्यक मानते हुए उन पर पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

आदेश की एक प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई।

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यह घटना 25 सितंबर 2018 की है, जब महाराष्ट्र के पालघर जिले के खरशेत गांव में एक ग्राम सेविका (इस मामले में शिकायतकर्ता पंचायत अधिकारी) आवास योजना के लिए सर्वेक्षण कर रही थीं।

अभियोजन के अनुसार, आरोपी जयश्री जगन धनवा और शिवदास गंगाराम तांबडी सूची में अपना नाम नहीं होने को लेकर महिला अधिकारी से कथित तौर पर बहस करने लगे और अपशब्द कहे।

आरोप है कि तांबडी ने अधिकारी का मोबाइल फोन छीनकर उसे तोड़ दिया।

दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य से रोकने के लिए हमला), 504 (जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), 427 (50 रुपये से अधिक की क्षति पहुंचाना) और 34 (साझा इरादा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि घटना के समय शिकायतकर्ता कानूनी रूप से अपना कर्तव्य निभा रही थीं। इसलिए धारा 353 की सबसे आवश्यक शर्त साबित नहीं हो पाई।”

अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस तरह के अपशब्द कहे गए थे।

अदालत ने कहा, “इसलिए यह निष्कर्ष निकालना कठिन है कि कथित अपशब्द भारतीय दंड संहिता की धारा 504 के अंतर्गत आते हैं।”

हालांकि, आरोपियों द्वारा शिकायतकर्ता का मोबाइल फोन तोड़े जाने समेत अन्य कृत्यों के आधार पर अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 427 के तहत दोषी ठहराया।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 427 के तहत अपराध साबित करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि नुकसान पहुंचाई गई संपत्ति पीड़ित की ही हो। इतना काफी है कि घटना के समय वह संपत्ति पीड़ित के पास थी।

न्यायालय ने आरोपियों पर पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि इसमें से 7,000 रुपये शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में दिए जाएं।

भाषा

खारी संतोष

संतोष


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