राज ठाकरे की अजान, निशाने पर अपने ही भाईजान
जमीन का तो भरोसा नहीं, लेकिन वे इस पूरे झगड़े में सेना से और खासकर भाई उद्धव से अपना दो दशकों पुराना हिसाब जरूर पूरा कर सकते हैं। अब सवाल ये है कि अभी ऐसा क्या हुआ कि राज ठाकरे अपने दशकों पुराने हिसाब को लेकर बैठ गए।
Raj Thackeray's azaan
बरुण सखाजी.
राज ठाकरे हनुमान चालीसा और अजान विवाद को तूल दे रहे हैं। इसलिए नहीं कि अजान की आवाज उनके कानों में चुभ रही है, बल्कि इसलिए ताकि वे अपनी खोई जमीन हासिल कर पाएं। जमीन का तो भरोसा नहीं, लेकिन वे इस पूरे झगड़े में सेना से और खासकर भाई उद्धव से अपना दो दशकों पुराना हिसाब जरूर पूरा कर सकते हैं। अब सवाल ये है कि अभी ऐसा क्या हुआ कि राज ठाकरे अपने दशकों पुराने हिसाब को लेकर बैठ गए। दरअसल अब ये हुआ है कि भाजपा उन्हें साथ देना चाहती है। महाराष्ट्र में 2024 के नवंबर में चुनाव होंगे। तब तक केंद्र के चुनाव हो चुके होंगे। राज इन चुनावों में भाजपा के लिए प्रदेश में मदद करेंगे। बदले में भाजपा उन्हें छह महीने बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मदद करेगी। ऊपर से देखें तो सिर्फ इतनी ही बात है, लेकिन यह असल में इतनी ही बात नहीं। पहले आपको नब्बे-पंचानवे में लिए चलते हैं जब राज ताकत में होकर अचानक से शक्तिहीन हो रहे थे।
>>*IBC24 News Channel के WhatsApp ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<
1992 में छिपे हैं इसके कारण
असली बात 1992 की है, जब राज ठाकरे पार्टी पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहे थे। उनकी सारी ग्रूमिंग बाल ठाकरे की तेजतर्रार छवि के हिसाब से हो रही थी। तभी सेना भाजपा के सहयोग से सरकार में आ गई। यह वो समय था जब उद्धव का नामोनिशान पार्टी में नहीं था। चाचा बाल ठाकरे भी राज को पूरा मौका दे रहे थे, लेकिन एक दिन अचानक से राज को मौके मिलने कम होने लगे। अपने निजी जीवन में व्यस्त उद्धव की वाइल्ड कार्ड एंट्री हो गई। यह एंट्री राज ठाकरे के पर करतरने में मील का पत्थर साबित हुई। राज मन मसोसकर रह तो गए, लेकिन 2006 तक आते-आते वे खुद को रोक नहीं पाए और अलग पार्टी बना ली। लेकिन सेना को कुचल नहीं पाए और उद्धव उल्टे मुख्यमंत्री के तख्त तक पहुंच गए। राज को यही अखर रहा है। अपने आक्रोष को दबाए राज उद्धव पर सीधा हमला नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया। जानकार बताते हैं इसके पीछे राज का अपने चाचा को किया कमिटमेंट है। लेकिन वे उद्धव को यह जरूर बताना चाहते हैं, सेना का असली वारिस राज ठाकरे ही था।
2019 में इस हाथ ले उस हाथ दे
चुनावी विश्लेषक रमेश ठाकुर कहते हैं महाराष्ट्र के 2019 के चुनावों में शिवसेना से नाराज भाजपा अबकी हर सूरत में शिवसेना को महाराष्ट्र से उखाड़ फेंकने के प्लान पर काम कर रही है। शुरुआती दौर में राकांपा को तोड़ने की कोशिश, फिर प्रदेश में शिवसेना को घेरने के हर मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी तक हर मोड़, गली में भाजपा की जानी दुश्मन शिवसेना ही है। वरिष्ठ पत्रकार अजयभान सिंह कहते हैं भाजपा ने बीएमसी में सेना को अच्छी टक्कर दी। लेकिन सिर्फ यही टक्कर पर्याप्त नहीं है। भाजपा अपनी रणनीति में राकांपा, मनसे दोनों को साधकर सेना को ठिकाने लगाने पर काम कर रही है।
राकांपा पर भी डोरे
मराठवाड़ा में राकांपा का वजूद अधिक मजबूत है। विदर्भ में भाजपा गहरी बैठी है। उत्तर-पश्चिम में कांग्रेस ठीक करती है। ऐसे जियो परफॉर्मेंस को ही भाजपा ने रणनीति में जोड़ा है। भाजपा पहला फोकस खुद को जीती सीटों पर मजबूत बनाए रखना चाहती है। समानांतर जहां हार का फासला 5 से 10 हजार है या जहां पार्टी पहले जीतती रही है, उन सीटों की वापसी पर काम कर रही है। भाजपा दूसरे कदम के रूप में उन कांग्रेसी इलाकों में सक्रियता दिखा रही है, जहां कांग्रेस ने सेना को हराया है। तीसरी रणनीति के तहत भाजपा राकांपा को भी नहीं छोड़ रही। हाल ही में शरद पवार मोदी से मिलकर आए हैं। बीच-बीच में राकांपा भी सेना को छकाती रहती है। भाजपा का एक खेमा शरद पवार का नाम राष्ट्रपति के लिए भी रखता रहता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है एनसीपी और भाजपा में इस तरह की किसी डील पर बात हो भी रही है। भाजपा मानती है मनसे और सेना के वोटर लगभग एक हैं। कांग्रेस के साथ जाने से सेना से बहुत सारे वोटर नाराज हैं। भाजपा मनसे को मदद करके सेना के वोटर्स को विभाजित करना चाहती है। भाजपा के कुछ रणनीतिकार इससे सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं, 2019 में गठबंधन में धोखा देने का संदेश आम लोगों तक साफ है। इसलिए लोग सेना से नाराज हैं और अबकी वे भाजपा से जुड़ेगे। लेकिन इस दलील को खारिज करते हुए भाजपा ने सेना के प्रभाव वाले कुछ इलाकों को चिन्हित करते हुए 2024 की रणनीति बनाई है। इसमें सेना की कोर वोट स्ट्रेंथ को तोड़ने के लिए भाजपा ने मनसे को इन इलाकों में सक्रिय किया है। मनसे का हनुमान चालीसा विवाद इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

Facebook



