वादी के व्यक्तिगत रूप से बहस करने संबंधी नियम मौलिक अधिकारों के विरोधाभासी नहीं : उच्च न्यायालय

वादी के व्यक्तिगत रूप से बहस करने संबंधी नियम मौलिक अधिकारों के विरोधाभासी नहीं : उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - May 7, 2024 / 05:40 PM IST,
    Updated On - May 7, 2024 / 05:40 PM IST

मुंबई, सात मई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वादियों को अपने मामलों में व्यक्तिगत रूप से बहस करने की अनुमति देने के लिए बनाए गए नियम नियामक प्रकृति के हैं और वे वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों के विरोधाभासी नहीं हैं।

न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने एक पूर्व न्यायिक अधिकारी द्वारा सितंबर 2015 की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जो पक्षकारों द्वारा व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही की प्रस्तुति और आचरण के नियम से संबंधित है।

अदालत ने कहा कि ये नियम निषेधात्मक प्रकृति के नहीं हैं, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 19(1)(ए) (वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के प्रावधानों का उल्लंघन हो।

पीठ ने कहा, ‘‘नियम केवल नियामक प्रकृति के हैं और न्यायिक प्रक्रिया की सुविधा के लिए किसी पक्ष द्वारा प्रस्तुतीकरण और कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए तैयार किए गए हैं।’’

याचिकाकर्ता नरेश वाजे ने अपनी याचिका में दावा किया कि नियम एक वादी को सुनवाई के अधिकार से वंचित करते हैं, इसलिए ये संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।

भाषा शफीक अविनाश

अविनाश