Tulsi Vivah 2025: इस वर्ष तुलसी विवाह कब मनाया जायेगा? जाने तुलसी और शालिग्राम विवाह की अद्भुत प्रेम कथा और पूजा के रहस्य

तुलसी विवाह २०२५ में २ नवंबर को एक ऐसा अवसर है, जो हमें भक्ति, प्रेम और पर्यावरण के प्रति जागरूक करता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और त्याग अमर होता है जाने दिव्य जोड़ी तुलसी और शालिग्राम जी का अनोखा बंधन..

Tulsi Vivah 2025: इस वर्ष तुलसी विवाह कब मनाया जायेगा? जाने तुलसी और शालिग्राम विवाह की अद्भुत प्रेम कथा और पूजा के रहस्य

Tulsi Vivah 2025

Modified Date: October 15, 2025 / 06:59 pm IST
Published Date: October 15, 2025 6:59 pm IST

Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, प्रेम और आध्यात्मिकता का एक अनोखा मेल है। २०२५ में यह पर्व २ नवंबर (रविवार) को मनाया जाएगा, जब द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह एक ऐसा अनोखा और भावपूर्ण त्योहार है, जो माता तुलसी (पवित्र तुलसी पौधा) का भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से विवाह दर्शाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, जो चातुर्मास (भगवान विष्णु की चार माह की योगनिद्रा) के समापन का प्रतीक है। यह न सिर्फ चातुर्मास के समापन का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और वैवाहिक सुख का भी संदेश देता है। तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है, और इसकी पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। आइए, विस्तार से जानें इसकी तिथि, महत्व, अद्भुत कथा और पूजा के नियम।

Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह २०२५ की तिथि और शुभ मुहूर्त

तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार:
दिनांक: २ नवंबर २०२५ (रविवार)।
द्वादशी तिथि प्रारंभ: २ नवंबर सुबह ७:३१ बजे।
द्वादशी तिथि समाप्ति: ३ नवंबर सुबह ५:०७ बजे।
शुभ मुहूर्त: विवाह पूजा का सर्वोत्तम समय शाम को होता है। पहला मुहूर्त दोपहर १:०२ से २:४४ बजे तक, दूसरा शाम ५:१७ से ५:४१ बजे तक।

यह समय मांगलिक कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है, क्योंकि भगवान विष्णु चातुर्मास की योगनिद्रा से जागते हैं। यदि एकादशी पर विवाह न हो सके, तो द्वादशी तक का समय उपयुक्त रहता है। आप चाहें तो पूजा को इको-फ्रेंडली बनाने के लिए ऑर्गेनिक सामग्री (जैसे मिट्टी के दीये, प्राकृतिक रंग) का उपयोग करें।

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तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी विवाह का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहन है। तुलसी को ‘पतिव्रता’ (पति-भक्त) की देवी माना जाता है, और उनका विवाह भगवान विष्णु से सुख-शांति का प्रतीक है। आईये जानतें हैं तुलसी विवाह का महत्व..

इस दिन विवाह करने से दांपत्य जीवन में प्रेम और समृद्धि आती है अर्थात वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। जिन्हे संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई यां बिना संतान वाले दंपति तुलसी विवाह का आयोजन कर कन्यादान करते हैं, जिससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। तुलसी माता लक्ष्मी रूपी हैं, इसलिए पूजा से घर में धन-धान्य की वृद्धि तो होती है साथ ही हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। यह पर्व चातुर्मास के अंत का सूचक है, जो भगवान विष्णु की जागृति का उत्सव है। नियमित तुलसी पूजा से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। सामाजिक महत्व से यह हिंदू विवाह ऋतु की शुरुआत करता है, जिससे समुदाय में एकता और उत्साह का माहौल बनता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसकी पूजा से लोग इसे घर में लगाने के लिए प्रेरित होते हैं।

तुलसी और शालिग्राम जी की अद्भुत कथा

तुलसी विवाह की कथा जालंधर राक्षस और वृंदा की पौराणिक घटना से जुड़ी है, जो प्रेम, भक्ति और त्याग की अद्भुत मिसाल है। स्कंद पुराण के अनुसार:

किसी काल में दैत्यराज जालंधर का जन्म भगवान शिव के तेज से हुआ। वह अत्यंत शक्तिशाली था, क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा अटूट पतिव्रता थीं। उनकी भक्ति के कारण जालंधर को वरदान मिला कि जब तक वृंदा पतिव्रता रहेंगी, वह अजेय रहेंगे। जालंधर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराने लगा। हताश देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
भगवान विष्णु ने जालंधर का वध करने के लिए एक कठोर निर्णय लिया। वे स्वयं जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा ने उन्हें पहचान लिया, लेकिन विष्णु जी ने छल से उनका पतिव्रत भंग कर दिया। इससे जालंधर की शक्ति नष्ट हो गई, और भगवान शिव ने उनका वध कर दिया। वृंदा को जब सत्य ज्ञात हुआ, तो वे क्रोधित हो गईं और विष्णु जी को श्राप दिया कि “तुम भी एक पत्थर के रूप में पूजे जाओगे।”
विष्णु जी ने वृंदा के त्याग की प्रशंसा की और कहा, “तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं। तुम मेरे निकट रहोगी।” वृंदा ने भी विष्णु जी को श्राप दिया कि “मैं भी एक पौधे के रूप में तुम्हारी पूजा में रहूंगी।” इसके फलस्वरूप, वृंदा तुलसी पौधे के रूप में प्रकट हुईं, और विष्णु जी शालिग्राम शिला (गंडकी नदी की काली पत्थर) बने। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को उनका विवाह हुआ, ताकि दोनों हमेशा एक-दूसरे के साथ रहें।

यह कथा भक्ति की शक्ति, प्रेम के त्याग और दिव्य मिलन का प्रतीक है। तुलसी विवाह के दिन इस कथा का पाठ करने से विशेष फल मिलता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और त्याग अमर होता है, और प्रकृति की रक्षा हमारा कर्तव्य है।

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Swati Shah, Since 2023, I have been working as an Executive Assistant at IBC24, No.1 News Channel in Madhya Pradesh & Chhattisgarh. I completed my B.Com in 2008 from Pandit Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G). While working as an Executive Assistant, I enjoy posting videos in the digital department.