छत्तीसगढ़ में माघ माह में इन जगहों पर लगता है मेला.. लोग स्नान, दान, श्राद्ध और तर्पण कर कमाते हैं पुण्य

छत्तीसगढ़ में माघ माह में इन जगहों पर लगता है मेला.. लोग स्नान, दान, श्राद्ध और तर्पण कर कमाते हैं पुण्य

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  • Publish Date - March 3, 2021 / 04:11 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:04 PM IST

रायपुर। माघ माह में नदियों पर स्नान कर लोग दान और तर्पण कर पुण्य कमाते हैं। छत्तीसगढ़ में 27 फरवरी से माघ मेले की शुरूआत हो गई है। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के नाम से सुशोभित राजिम में 15 दिनों तक चलने वाले राजिम माघी पुन्नी मेला का शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने किया। इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष ने भगवान राजीवलोचन की प्रतिमा में दीप प्रज्वलित और पूजा अर्चना कर किया। बता दें कि माघ माह में ही कुंभ मेले की तरह इन छत्तीसगढ़ के रतनपुर, शिवरीनारायण, बेलपान में मेले का आयोजन होता है। चलिए आज आपको बताते हैं माघ पुन्नी मेले राजिम के आलवा प्रदेश में और कहां-कहां आयोजित होती…

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राजिम मेला को पुरातन संस्कृति और पुन्नी मेला

राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर सोंढूर, पैरी और महानदी के त्रिवेणी संगम-तट पर बसे छत्तीसगढ़ की इस नगरी राजिम राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यह महानदी पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी है और इसी के तट पर बसी है राजिम नगरी। हर साल लाखों श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं। देश विदेश से भी श्रद्धालु मेले में शामिल होने आते हैं। हालांकि इस बार कोरोना के चलते सीमित लोगों की उपस्थिति में मेला का आयोजन किया जा रहा है। मेले का समापन महाशिवरात्रि के दिन हो जाता है।

महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। राजिम कुंभ में भी कुंभ की तरह एक दर्जन से ज्यादा अखाड़ों के अलावा शाही जुलूस, साधु-संतों का दरबार, झांकियां, नागा साधुओं और धर्मगुरुओं की उपस्थिति मेले के आयोजन को सार्थकता प्रदान करेगी।

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शिवरीनारायण मंदिर दो राज्यों की आस्था का केंद्र

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन ओडिसा के पुरी से भगवान जगन्नााथ चलकर शिवरीनारायण के मुख्य मंदिर में विराजते हैं। इस तरह शिवरीनारायण दो राज्यों की आस्था का केन्द्र है। यहां ओडिसा से भी भक्तगण बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि रामायण काल में अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम यहां आए थे और सबरी ने यहीं उन्हें अपने जूठे बेर खिलाए थे। भगवान जगन्नाथ और प्रभु श्रीराम से जुड़ इस आस्था के केंद्र में हर साल मेला सजता है। माघ माह में यहां हजारों श्रद्धालु दीप दान कर पुण्य कमाते हैं।

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गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान शिवरीनारायण है। पहले भगवान जगन्नाथ का विग्रह शिवरीनारायण में ही था। कालांतर में शिवरीनारायण घनघोर जंगल था, जहां दूर से नित्य प्रतिदिन एक पुजारी भगवान का पूजन करने सुबह पहुंचते और भगवान का पूजन और भोग लगाने के बाद दोपहर विश्राम करते इसके बाद शाम होने से पहले भगवान जगन्नाथ की संध्या आरती करने के बाद अपने गंतव्य को वापस लौट जाया करते थे। पुजारी की इस क्रिया पर राजा के गुप्तचर बड़ी बारीकी से नजर रख रहे थे।

राजीम माघी पुन्नी मेले की तरह बेलपान मेले का आयोजन होता है। प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के अवसर पर बेलपान में नर्मदा कुण्ड के पास मेला लगता है जो लगभग 10 दिनों तक चलता है। इस मेले का इंतजार पूरे क्षेत्रवासीयों को रहता है। आसपास के ग्रामीण अपने जरूरतों की सामान कपड़े, बर्तन, छोटे मोटे आभूषण इसी मेले से खरीदते हैं। मेला स्थल का ठेका जनपद पंचायत की ओर से ग्राम पंचायत बेलपान को 55 हजार रुपए में दिया गया है। मेले को लेकर पंचायत की ओर से तैयारियां कर ली गई है। क्षेत्र का लोकप्रिय मेला होने के कारण यहां पर मेले स्थल पर लोगों की भारी भीड़ रहती है और बड़े ही उत्साह के साथ लोग मेले का आनंद लेते है। माघीपूर्णिमा के दिन श्रद्धालु नर्मदा कुण्ड में स्नानकर भगवान नर्मदेश्वर का जलाभिषेक करते है। ऐसी मान्यता भी है कि यहां पर नहाने से लोगों की चर्म रोग से संबंधित बीमारियां भी ठीक हो जाती है।

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सोनकुंड मेला

राजिम माघी पुन्नी मेला की तरह सोनकुंड में भी माघी पूर्णिमा के अवसर पर मेला का आयोजन शुरू हो गया है। करीब 80 सालों से माघी पूर्णिमा पर्व पर साधु संतों का आगमन हो रहा है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के सोनकुंड में अनेक महापुरुषों ने कड़ी तपस्या की थी। पेंड्रा जिले में स्थित सोनकुंड में संतों की उपस्थिति में धूमधाम से माघी पूर्णिमा पर्व मनाया गया। छत्तीसगढ़ के ग्रामवासियों और वनवासियों के लोग दर्शन करने आते हैं। सोनकुंड आश्रम में पांच दिवसीय मेला आयोजित होता है इसमें कई संत महात्मा सम्मलित होते हैं। आश्रम बेलगहना में भी संत समागम होता है। ज्ञात हो कि बेलगहना आश्रम से संबंधित 32 आश्रमों में प्रमुख माने जाने वाले सोनकुंड आश्रम में नर्मदा और सोनभद्र के प्राचीन मंदिर हैं। सोनकुंड में अनूपपुर, शहडोल, कोरबा और बिलासपुर, लोरमी आदि स्थान से लोग पहुंचते हैं।

धर्मस्व मंत्री ताम्रध्वज ने कहा- विकास का आधार हमारी संस्कृति

धर्मस्व मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री ताम्रध्वज साहू ने मेले के शुभारंभ के मौके पर कहा कि मेला का स्वरूप पहले बदल गया था जिसे पुनः स्थापित किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार आते ही पहला विधेयक राजिम माघी पुन्नी मेला का लाया था और गजेटियर के अनुसार इसे पुन्नी मेला का नाम दिया गया। उन्होंने कहा की अब राज्य में पृथक से धार्मिक न्यास का संचालनालय बनेगा। इसमें संभाग स्तर पर उप संचालक पद की नियुक्ति जाएगी। साथ ही राज्य के सभी मंदिर ट्रस्ट आदि की जानकारी एकत्र कर धार्मिक न्यास के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। इस दिशा में शीघ्रता से कार्य जारी है। राजिम मेला के लिए 54 एकड़ स्थाई जमीन चयन के लिए स्थानीय प्रशासन को बधाई दी।

राज्य के विकास का आधार हमारी संस्कृति है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि राज्य की पुरातन संस्कृति का संरक्षण किया जाए। कोरोना संक्रमण को देखते हुए उन्होंने आम लोगों और श्रद्धालुओं से अपील की है कि मेले में कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए आनंद उठाएं। मंत्री साहू ने मास्क लगाने और साबुन से हाथ धोने व सेनिटाइजर क उपयोग करने जैसे प्रोटोकॉल का पालन करने आग्रह किया है।

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छत्तीसगढ़ की संस्कृति में मिठास, प्रेम और सद्भावना

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति में मिठास, प्रेम और सद्भावना राज्य की प्रतीक है। उन्होंने राजिम मेला को पुरातन संस्कृति और पुन्नी मेला के रूप में स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और धर्मस्व मंत्री का बधाई दी। डॉ. महंत ने कहा कि राज्य में आपसी प्रेम और सद्भाव है से नवा छत्तीसगढ़ गढ़बो। उन्होंने कहा कि आज हमें आपसी भेदभाव और घृणा की आवश्यकता नहीं है। राजिम माघी पुन्नी मेला आपसी प्यार और सद्भाव का संदेश देती है।

राजिम विधायक अमितेश शुक्ला ने कहा कि राजिम सदियों से महान पवित्र भूमि है यहां आस-पास की सांस्कृतिक धरोहर विद्यमान है। यहां आसपास के हजारों लोग दर्शन करने आते हैं और पुण्य लाभ कमाते हैं।