नस्लवाद के खिलाफ सांकेतिक प्रदर्शन पर किसी अन्य के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए: को

नस्लवाद के खिलाफ सांकेतिक प्रदर्शन पर किसी अन्य के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए: को

नस्लवाद के खिलाफ सांकेतिक प्रदर्शन पर किसी अन्य के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए: को
Modified Date: November 29, 2022 / 08:57 pm IST
Published Date: December 13, 2020 12:45 pm IST

नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) विश्व एथलेटिक्स (डब्ल्यूए) के अध्यक्ष सेबास्टियन को ने कहा कि नस्लवाद (या रंगभेद) जैसे मुद्दों के खिलाफ एथलीटों के सांकेतिक प्रदर्शनों को ‘ समायोजित’ करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है लेकिन इस हरकत से जश्न मना रहे किसी और खिलाड़ी के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिये।

दुनिया भर के शीर्ष एथलीटों ने ‘ब्लैक लाइव्स मैटर (अश्वेत जिंदगी भी मायने रखती है)’ आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त की है, जो अमेरिका में एक श्वेत पुलिस अधिकारी के हाथों अफ्रीकी-अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद बड़ा मुद्दा बना गया।

ओलंपिक चार्टर के नियम 50 में घुटने टेकने, मुट्ठी उठाने या पदक समारोह में प्रोटोकॉल का पालन करने से इनकार करने सहित किसी भी तरह के विरोध पर प्रतिबंध है।

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सेबास्टियन को हालांकि इस तरह की भाव भंगिमा में कोई शिकायत नहीं है।

उन्होंने पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘ यह बहुत स्पष्ट है कि हर कोई अपने खेल के भीतर अपने दृष्टिकोण की समीक्षा कर रहा है। अगर एथलीट भेदभाव या खेल में नस्लवाद के खिलाफ आवाज उठाते है या विरोध करते है तो मुझे खुशी होगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे इसे समायोजित करने में खुशी होगी। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि इस तरह के किसी भी संकेत का हावभाव सम्मानजनक होना चाहिये और इससे अपनी उपलब्धि (या जीत) का जश्न मना रहे किसी अन्य एथलीट को परेशानी नहीं होनी चाहये।’’

पिछले शनिवार को डब्ल्यूए के अध्यक्ष ने 1968 ओलंपिक में 200 मीटर दौड़ के पदक विजेता अश्वेत धावकों टॉमी स्मिथ (स्वर्ण) और जॉन कार्लोस (कांस्य) को सम्मानित किया था।

इन दोनों ने 200 मीटर की दौड़ जीतने के बाद पदक समारोह में अमरीकी राष्ट्रीय गान की धुन बजते समय अपने सिर झुका कर हाथों में काले दस्ताने पहन कर रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन किया जबकि रजत पदक विजेता ऑस्ट्रेलिया के पीटर नोरमैन सामान्य तरीके से खड़े थे।

सेबास्टियन ने कहा, ‘‘ एथलीट विचारों का नेतृत्व करने के मामले में हमेशा आगे रहे है। ऐसा पहले भी हुआ है। 1936 ओलंपिक में जेसी ओवेन्स ने ऐसा किया है। ओलंपिक स्टेडियम में हमने शरणार्थी दल को भी देखा है।’’

भाषा आनन्द पंत

पंत


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