सबरीमाला की तरह यहां महिलाओं के जाने पर पाबंदी, मान्यताओं का कड़ाई से करती हैं पालन

सबरीमाला की तरह यहां महिलाओं के जाने पर पाबंदी, मान्यताओं का कड़ाई से करती हैं पालन

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  • Publish Date - January 13, 2019 / 07:50 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:41 PM IST

कवर्धा। आपने सबरीमाला मंदिर के बारे में तो जरूर सुना होगा और मानय्ता के नाम वहां छिड़े महाभारत से भी परिचित होंगे। लेकिन ठीक सबरीमाला की मान्यताओं से मेल खाता छत्तीसगढ़ में भी एक देवी मंदिर है जहां कोई महिला प्रवेश नहीं करती और इसके लिए महिलाओं ने कोई आंदोलन भी नहीं किया ना ही महिलाओं ने मंदिर की मान्यताओं को तोड़ने की कोशिश की बल्कि वो खुद मान्यताओं का कड़ाई से पालन करती हैं।

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जिला मुख्यालय कवर्धा से 20 किमी दूर ग्राम सूरजपुरा में मौजूद है मां राजोदाई मंदिर सबरीमाला मंदिर की तरह यहां भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। महिलाओं के मंदिर में एंट्री के पीछे है यहां की सालों पुरानी पंरपरा। दरअसल गांव राजोदेवी माता गांव में पिण्ड स्वरूप में विराजमान है, जो कि कंवारी माता के रूप में है। मंदिर गांव के अंतिम छोर में स्थित है। जहां 10 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को प्रवेश पर रोक है। इस मंदिर में केवल पुरुष ही प्रवेश कर पूजा पाठ करते हैं। महिलाएं मंदिर के बाहर से ही प्रार्थना कर सकती हैं, गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकती। और ना की कभी किसा ने मंदिर में मान्यताओं के उलट जबरदस्ती घुसने की कोशिश की है।

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गांव की एक अन्य खासियत यह भी है कि देवी को दूसरे देवी मंदिरों की तरह लाल चुनरी या लाल साड़ी चढ़ान, बंदन, कुमकुम की परंपरा नहीं बल्कि। लोगों की मान्यता है कि राजोदेवी मां का श्रंगार काला है, इसलिए काली साडी, काली चुनरी, काला टिका ही चढाया जाता है। इस मान्यता को गांव की माहिलाएं माता के सम्मान के रूप में देखती है यही कारण है कि सुरजपुरा गांव की महिलाएं कभी भी काली साडी नहीं पहनती।

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ग्रामीणों की मान्यता है कि देवी गांव के एक बुजुर्ग के सपने में आई कि फोंक नदी के बीच धार में देवी का पिंड बह रहा है। ग्रामीण नदी पहुंचे वहां पर देवी का पिंड मिला, जिसे वहीं स्थापित कर दिया गया और फिर नदी से किनारे झोपड़ी में विराजित किया गया। इसके बाद कुछ साल पहले मंदिर में स्थापित किया गया। मंदिर की मान्यता के मुताबिक यहां साल के दोनों नवरात्रि में एक हजार से अधिक ज्योतिकलष प्रज्वलित की जाती है। हजार की संख्या में ज्यादोतिकलष प्रज्वललित होने से भी समझा सकता है कि माता राजोदेवी की मान्यता कितनी है।