Decrease in students of pre-primary classes : महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई | Number of students in pre-primary classes in Aurangabad, Maharashtra decreased

Decrease in students of pre-primary classes : महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई

Decrease in students of pre-primary classes : महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई

Decrease in students of pre-primary classes : महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई
Modified Date: November 29, 2022 / 08:21 pm IST
Published Date: July 20, 2021 7:22 am IST

Decrease in students of pre-primary classes

औरंगाबाद (महाराष्ट्र), 20 जुलाई (भाषा) महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई है और इसकी मुख्य वजह कोविड-19 महामारी है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

औरंगाबाद नगर निगम (एएमसी) में शिक्षा अधिकारी रामनाथ थोरे ने सोमवार को पीटीआई-भाषा को बताया कि नगर निकाय (मराठी और उर्दू माध्यम के) 72 स्कूलों का संचालन करता है।

उन्होंने बताया, “2018-19 में इन स्कूलों की पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं (तीन से छह साल के बच्चों के लिए किंडरगार्टन) में छात्रों की संख्या 3,500 थी, जो 2019-20 में घटकर 2,953 तथा 2020-21 में 2,375 रह गई।’

उन्होंने यह भी कहा कि 2018-19 में पहली से आठवीं कक्षा में छात्रों की संख्या 12,393 थी जो 2020-21 में घटकर 10,838 रह गई थी, लेकिन, शैक्षणिक सत्र 2021-22 में विद्यार्थियों की संख्या 11,829 हो गई है।

अधिकारी ने यह भी बताया कि कक्षा नौवीं और 10वीं में विद्यार्थियों की संख्या 2020-21 में 1,903 तक पहुंच गई है जो 2018-19 में 1,777 और 2019-20 में 1,300 थी।

पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों की संख्या में गिरावट के बारे में पूछे जाने पर, एएमसी आयुक्त आस्तिक कुमार पांडे ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने स्थिति को बिगाड़ दिया है।

उन्होंने कहा, “पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश वैकल्पिक है और माता-पिता जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। दूसरा, प्रवास भी एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि लोग सोच सकते हैं कि महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में जाना उनके लिए एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है।”

यहां के एक निजी शिक्षण संस्थान की प्रधानाध्यापिका नयना आव्हाड ने कहा कि निजी स्कूल भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “माता-पिता को लगता है कि एक साल तक स्कूल नहीं आने पर उनके बच्चों की शिक्षा प्रभावित नहीं होगी। उनमें से कुछ ने वित्तीय समस्याओं के कारण दाखिला रद्द करा दिया है, जबकि कुछ अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं।”

भाषा

नोमान प्रशांत

प्रशांत

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