सिंघल ने ढांचे को बचाने की कोशिश की, पुजारी ने राम लला के विग्रह को बचाया : बचाव पक्ष

सिंघल ने ढांचे को बचाने की कोशिश की, पुजारी ने राम लला के विग्रह को बचाया : बचाव पक्ष

सिंघल ने ढांचे को बचाने की कोशिश की, पुजारी ने राम लला के विग्रह को बचाया : बचाव पक्ष
Modified Date: November 29, 2022 / 07:53 pm IST
Published Date: September 30, 2020 2:24 pm IST

लखनऊ, 30 सितंबर (भाषा) बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि जब उपद्रवियों ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ध्वस्त करना शुरू किया तब राम लला और अन्य की प्रतिमाएं गर्भ गृह में मौजूद थीं और उन्हें पुजारी ने बचाया जो साबित करना है कि घटना पूर्व नियोजित नहीं थी।

सुनवाई के दौरान वकील ने अदालत से कहा कि ढांचे को उपद्रवियों ने गिराया जिन्होंने रामकथा कुंज से दिए सांकेतिक ‘कारसेवा’ के निर्देश की अवेहलना की।

उल्लेखनीय है कि विवादित ढांचे से करीब 200 मीटर की दूरी पर स्थित रामकथा कुंज में बने मंच पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) नेता मौजूद थे जहां से उन्होंने भीड़ को संबोधित किया।

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बचाव पक्ष के वकील ने दावा किया कि दिवंगत विहिप नेता अशोक सिंघल ने ध्वस्त होने से बचाने की हर संभव कोशिश की लेकिन उपद्रवियों ने उनकी अवज्ञा की।

वकील विमल कुमार श्रीवास्तव द्वारा 400 पन्नों के लिखित और मौखिक तर्क को अदालत ने स्वीकार किया है।

उन्होंने कहा कि राम लला की प्रतिमा को गर्भगृह से नहीं हटाया गया था और इन प्रतिमाओं को मंदिर के पुजारी सत्येंद्र दास ने बचाया। यह दिखाता है कि अभियुक्त का ढांचे को ध्वस्त करने की कोई योजना नहीं थी।

उन्होंने यह भी कहा कि कहा कि सीबीआई के किसी गवाह के बयान में भी द्वेषपूर्ण इरादे का पता नहीं चला है और अभियुक्त इलाके में शांति बनाए रखने का प्रयास कर रहे थे।

वकील ने कहा कि वीडियो और ऑडियो कैसेट को सीलबंद नहीं रखा गया और न ही प्रयोगशाला में भेजे गए। उनमें छेड़छाड़ की गई है और इसलिए उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई द्वारा सबूत के तौर पर पेश अखबारों के आलेख को भी अदालत में जमा नहीं कराया गया।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ‘कारसेवा’ को सकरात्मक और धार्मिक माहौल में किया जाना था लेकिन स्थानीय खुफिया शाखा (एलआईयू) द्वारा जैसे की सूचित किया गया है कि उपद्रवी तत्व इसे बाधित करने के लिए सक्रिय थे।

वकील ने आरोप लगाया कि मामले में अभियुक्तों को तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकर ने राजनीतिक कारणों से गलत तरीके से फंसाया।

उल्लेखनीय है कि लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने भाजपा के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित सभी 32 अभियुक्तों को पुख्ता सबूत के अभाव में बरी कर दिया।

सीबीआई न्यायाधीश एसके यादव ने बहुप्रतिक्षित मामले में 28 साल बाद फैसला सुनाते हुए अखबारों और वीडियो कैसेट को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि विहिप के दिवंगत नेता अशोक सिंघल ने ढांचा बचाने की कोशिश की क्योंकि राम लला की प्रतिमा गर्भगृह में थी।

भाषा धीरज शाहिद

शाहिद


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