आत्मसमर्पित माओवादियों और और गोपनीय सैनिकों का भविष्य अधर में लटका

आत्मसमर्पित माओवादियों और और गोपनीय सैनिकों का भविष्य अधर में लटका

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  • Publish Date - January 20, 2019 / 07:28 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:52 PM IST

जगदलपुर। बस्तर में पुलिस द्वारा आक्रामक रणनीति की शुरुआत तत्कालीन बस्तर रेंज आईजी एसआरपी कल्लूरी ने शुरू की थी उनकी मल्टी प्रॉन स्ट्रेटजी की वजह से सैकड़ों की तादाद में माओवादी समर्थकों ने सरेंडर किया था और इनमें से ज्यादातर लोगों को सहयोग के लिए बतौर सहायक आरक्षक या गोपनीय सैनिक पुलिस के साथ शामिल कर लिया गया था पर अब इन गोपनीय सैनिक का भविष्य अधर में लटक गया है।

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दरअसल 2014 से 17 के बीच बड़े पैमाने में ग्रामीण नक्सलवाद का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में लौट कर आए थे इनमे से ज़्यादातर को तत्काल 10000 की सहायता राशि और लाखों का इनाम घोषित के रूप में प्रचारित किया गया ऐसे माओवादियों का सिलसिलेवार सरेन्डर पिछले कुछ सालों में बस्तर के लोगों ने देखा गया। कैडर को सरेंडर करवाने के साथ-साथ पुलिस ने कथित तौर पर मल्टी स्ट्रेटजी का हवाला देते हुए लोगों को बसाने नौकरी देने और नाम के अनुसार पुनर्वास का लाभ देने की बात कही थी पर हुआ कुछ नहीं।

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यहाँ तक कि अब इनमे से जिन लोगो को गोपनीय सैनिक के तौर पर रखा गया था उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया है शबनम उर्फ फगनी मांडवी भी 5 लाख की इनामी थी। 2016 में नारायणपुर इलाके में डिवीज़न एरिया कमिटी की सदस्य थी और अब उसे भी नौकरी से निकाल दिया गया है। नक्सल संगठन से फगनी के नीचे पद से आये ज्यादातर लोग पुनर्वास के क्राइटेरिया में ही नहीं आते थे 10 से 12 नक्सली ही इस दायरे में आए जबकि( तीन सालों में कुल सरेन्डर का आंकड़ा 2090 के आस पास है)और बाकी बचे पुलिस के उस झांसे का शिकार हो गए जिसके भरोसे उन्होंने गांव छोड़ा था अब इन लोगों के पास जीविकोपार्जन एक बड़ी चुनौती है।

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इनमें कई पर कथित तौर पर लाखों का इनाम भी घोषित कर रखा गया है पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नियमानुसार जिसे जो प्रावधान है उसका लाभ दिया जाना है पुराने अधिकारियों की मौजूदगी तक तो बहुत से लोगों का काम चलता रहा 10000 की प्रोत्साहन राशि के अलावा रहने और दूसरे ठिकानों की व्यवस्था भी होती रही पर इसके बाद इन गोपनीय सैनिक पर बन आयी है।