टीवी पर प्रसारित समाचार से होने वाली क्षति से पहले उसकी जांच के लिए क्या व्यवस्था है: अदालत

टीवी पर प्रसारित समाचार से होने वाली क्षति से पहले उसकी जांच के लिए क्या व्यवस्था है: अदालत

टीवी पर प्रसारित समाचार से होने वाली क्षति से पहले उसकी जांच के लिए क्या व्यवस्था है: अदालत
Modified Date: November 29, 2022 / 08:21 pm IST
Published Date: October 16, 2020 1:32 pm IST

मुंबई, 16 अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से पूछा कि समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित की गई किसी विषयवस्तु से “होने वाली क्षति” से पहले क्या उसकी जांच का कोई तरीका उपलब्ध है।

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की कवरेज संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि अगर मीडिया सीमारेखा लांघता है तो इसके लिए विधायिका को कार्रवाई करनी चाहिए।

अदालत ने कहा, “ऐसे मामले से जहां मीडिया ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघता है, वहां संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए। इसमें अदालत दखलंदाजी क्यों करे?”

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कई पूर्व पुलिस अधिकारियों की और से दायर याचिका में कहा गया कि राजपूत के मामले में “मीडिया ट्रायल” चल रहा है और इसे बंद करना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने कहा, “कुछ गलत होने पर किसी भी लोक सेवक को हटाया जा सकता है। निजी कर्मचारियों पर भी यही लागू होता है। उचित आचरण न करने पर लोगों पर कार्रवाई की जाती है।”

पीठ ने कहा, “प्रिंट मीडिया पर लगाम के लिए आपके पास व्यवस्था है। ऐसा ही आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ नहीं करते।”

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार सरकार को प्रेस की स्वंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और प्रेस को नियमन के लिए खुद प्रयास करना चाहिए।

इस पर अदालत ने कहा कि सिंह जिन आदेशों का हवाला दे रहे हैं वह पुराने हैं।

अदालत ने कहा, “यह आदेश 2012-13 के हैं और अब समय बदल गया है। आज स्वतंत्रता का अत्यधिक दुरुपयोग किया जा रहा है।”

पीठ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की हालिया टिप्पणी का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया जा रहा है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि समाचार चैनलों के नियमन के लिए वर्तमान में जो व्यवस्था है उसके प्रभावी होने पर अदालत को चिंता है।

न्यायाधीशों ने कहा, “ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति जो कहना चाहता है उसे वह कहने का निरंकुश लाइसेंस मिला हुआ है। कथित तौर पर जो क्षति होती है, उसे रोकने के लिए क्या कोई व्यवस्था है? या आप तभी कार्रवाई करते हैं जब कोई समाचार प्रसारित हो जाता है और शिकायतें आने लगती हैं?”

अदालत ने कहा कि मीडिया को यह ध्यान में रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति की छवि खराब न हो।

एएसजी सिंह ने कहा कि सरकार का भी यही मत है और जो कुछ भी हो सकता है उस पर सरकार विचार कर रही है।

मामले की सुनवाई सोमवार को जारी रहेगी।

भाषा यश माधव

माधव


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