Delhi Blast News: बाल—बाल बचे अशोक रंधावा, दो मिनट पहले ही निकल गए थे बम धमाके वाली जगह से, सुनिए उनकी जुबानी ब्लास्ट की कहानी
दिल्ली में लाल किले के पास हुए हालिया धमाके ने राजधानी की धड़कनें थाम दी हैं और 14 साल पुराने दर्द को फिर से याद दिला दिया है। 2005 में सरोजिनी नगर ब्लास्ट में हुए भयावह हादसे की यादें जैसे ताजा हो गई हैं। उसी हादसे की गवाह और मददगार अशोक रंधावा आज भी दिल्ली के अस्पतालों में पीड़ितों की मदद करते हैं।
lal qila blast news/ image soruce: IBC24
- लाल किले के पास हुए धमाके ने राजधानी को हिला दिया।
- 2005 सरोजिनी नगर ब्लास्ट की यादें फिर ताज़ा हुईं।
- अशोक रंधावा और सुरेंद्र कुमार पीड़ितों की मदद के लिए घटनास्थल पर मौजूद।
Delhi Blast News: दिल्ली: दिल्ली में लाल किले के पास हुए हालिया धमाके ने राजधानी की धड़कनें थाम दी हैं और 14 साल पुराने दर्द को फिर से याद दिला दिया है। 2005 में सरोजिनी नगर ब्लास्ट में हुए भयावह हादसे की यादें जैसे ताजा हो गई हैं। उस ब्लास्ट में करीब 50 लोग अपनी जान गंवा बैठे थे और घायल होने वाले कई लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई थी। उसी हादसे की गवाह और मददगार अशोक रंधावा आज भी दिल्ली के अस्पतालों में पीड़ितों की मदद करते हैं।
रंधावा ने क्या बताया ?
Delhi Blast News: अशोक रंधावा ने बताया कि वह सरोजिनी नगर ब्लास्ट के समय लगभग दो मिनट पहले ही वहां से हट गए थे, वरना उनका नाम भी मृतकों में शामिल हो सकता था। उस हादसे के बाद से उन्होंने जीवन को एक मिशन बना लिया है, आतंकवादी हमलों के पीड़ितों और उनके परिवारों की हर संभव मदद करना। उनके साथ एलएनजेपी अस्पताल पहुंचे सुरेंद्र कुमार ने भी 2005 ब्लास्ट में अपने बड़े भाई को खोया था और वे भी पीड़ित परिवारों के लिए हमेशा मदद का हाथ बढ़ाते हैं।
लाल किले में हुए हादसे पर पहुंचे रंधावा
Delhi Blast News: दिल्ली में हाल ही में हुए लाल किले धमाके की खबर सुनते ही अशोक रंधावा अपने परिवार और शहर की परवाह छोड़कर तुरंत घटनास्थल और अस्पताल पहुंच गए। वे बताते हैं कि ऐसे समय में सबसे बड़ी जरूरत पीड़ितों को मानसिक और भौतिक सहारा देना होती है। मृतकों के शवों को उनके परिवार तक पहुँचाने, घायल लोगों का प्राथमिक उपचार कराने और प्रभावित परिवारों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था करने में वे तन-मन से जुट जाते हैं।
अशोक रंधावा के मुताबिक, देश में कहीं भी आतंकी हमला हो, वे बिना किसी झिझक के वहां पहुंचते हैं। उनका मानना है कि आतंकवाद सिर्फ धमाका नहीं है, यह इंसानियत पर हमला है। ऐसे हमलों से न केवल पीड़ितों की जान जाती है, बल्कि उनके परिवारों का जीवन भी हमेशा के लिए बदल जाता है। इसलिए जरूरत होती है कि लोग एक-दूसरे का सहारा बनें।
लाल किले धमाके के बाद अशोक रंधावा अस्पताल के बाहर कुर्सी पर बैठकर पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज भी कई परिवार ऐसे हैं जो दिल्ली के बाहर रहते हैं और उन्हें अपने अपनों के शव लेने या इलाज के लिए शहर में रुकने की व्यवस्था करनी पड़ती है। अशोक रंधावा ने कहा, “हमारे समाज में ऐसे लोग होने चाहिए जो इन दुख की घड़ियों में पीड़ितों का हाथ थामें और उनकी मदद करें। यही असली इंसानियत है।”

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