(आनन्द राय)
लखनऊ, 16 नवंबर (भाषा) बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की एकतरफा जीत के बाद उप्र में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दलों के समूह ”इंडिया गठबंधन” के भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को ‘मुस्लिम लीगी’ और ‘माओवादी’ करार देते हुए यह कहकर कि ”जल्द ही कांग्रेस में विभाजन देखने को मिलेगा” एक नई बहस की शुरुआत कर दी है।
जानकार मानते हैं कि उप्र में इसको लेकर मंथन शुरू होगा और भविष्य की उम्मीद तलाशते पक्ष-विपक्ष के कार्यकर्ताओं को भी समीक्षा की एक नई कसौटी मिलेगी। इसके लिए दिमागी स्तर पर खेल शुरू हो चुका है।
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव जिन्होंने बिहार चुनाव परिणाम पर त्वरित टिप्पणी करते हुए ”भाजपा दल नहीं छल है” करार दिया और यह भी स्वीकार किया कि भाजपा से बहुत सीखने की जरूरत है।
उधर, उप्र के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विपक्ष पर तंज कसते हुए ”मगध के बाद अब अवध” कह कर यह संकेत देने की कोशिश की कि भाजपा बिहार परिणाम को अब उप्र के लिए शुभ संकेत के रूप में दिखाने की योजना बना रही है। बिहार चुनाव परिणामों को लेकर उप्र के राजग नेताओं का उत्साह भी चरम पर है।
उप्र में 2024 के लोकसभा चुनाव से सपा के गठजोड़ से कुछ हद तक नया जीवन पाने वाली कांग्रेस 2027 के महागठबंधन के सवालों को लेकर सीधे-सीधे जवाब देने से बच रही है।
कांग्रेस में विभाजन संबंधी मोदी के बयान पर लोकसभा चुनाव में वाराणसी संसदीय क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी रहे उप्र कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने पीटीआई-भाषा से कहा ”उन्हें पहले खुद को देखना चाहिए। कांग्रेस के बारे में वह क्या जानते हैं?”
लेकिन दावे और प्रतिदावे से इतर यह सवाल तो उठने ही लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साथ मिलकर राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 43 सीटें जीतने वाली सपा और कांग्रेस का 2027 के विधानसभा चुनाव में रिश्ता कैसा रहेगा?
उप्र में विपक्षी एकता का सारा दारोमदार इन्हीं दोनों दलों की एकजुटता पर निर्भर करेगा। यूं तो जाहिरा तौर पर अभी सपा और कांग्रेस ”ऑल इज वेल” का तराना गुनगुना रहे हैं। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में खराब परिणाम आने के बाद कांग्रेस और सपा के रिश्ते टूट गये थे और दोनों लड़कों (राहुल-अखिलेश) की जोड़ी अलग हो गई थी।
2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही उप्र में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की एकता ने यहां 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर संभावनाओं की एक नई जमीन तैयार की थी। इसके बाद से ही राजनीतिक पंडितों को 2027 में राज्य में विपक्ष के भविष्य को लेकर संभावनाएं दिखने लगी थीं।
हालांकि अब उनका दावा है कि बिहार के ताजा चुनाव परिणामों ने जिस तरह विपक्षी दलों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान और ”वोट चोरी” के मुद्दे को दरकिनार कर दिया, उससे उप्र में राजग को चुनौती दे पाना आसान नहीं होगा। इनका तर्क है कि लोकसभा चुनावों के बाद जो उत्साह बना था, उसको बिहार के परिणामों से झटका लगा है।
हालांकि सपा के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और उप्र सरकार के पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने पीटीआई-भाषा से कहा ”झटका लगने जैसी कोई बात नहीं है, हम परिणाम की समीक्षा करेंगे कि उसकी क्या-क्या वजहें हैं।” चौधरी ने यह दावा किया कि ”इंडिया गठबंधन पर कोई आंच नहीं आएगी, गठबंधन मजबूत रहेगा।”
सपा प्रवक्ता ने कहा कि ”हम बिहार चुनाव से सबक लेंगे, भाजपा ने जो वहां एसआईआर में गड़बड़ी कराई, उससे निपटने के लिए उप्र की जनता तैयार है।”
उल्लेखनीय है कि उप्र में एसआईआर की शुरुआत हो चुकी है और लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसकी पारदर्शिता बनाए रखने को लेकर अपने-अपने कार्यकर्ताओं को आगाह कर दिया है।
सपा प्रवक्ता चौधरी ने यह भी कहा कि बिहार परिणाम से हमारे कार्यकर्ता और सतर्क होंगे, ज्यादा सावधान होंगे और ज्यादा ताकत से काम करेंगे।
उन्होंने दावा किया, ”हम उप्र में 2027 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रहे हैं। 2027 में और बेहतर प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि भाजपा क्या क्या षड़यंत्र कर सकती है, उससे सपा और इंडिया गठबंधन सावधान हो गया है।”
उधर, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने बिहार विधानसभा चुनाव में राजग की प्रचण्ड जीत को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्कृष्ट विकास नीतियों एवं अंत्योदय व गरीब कल्याण योजनाओं का परिणाम बताते हुए दावा किया कि 2027 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन उप्र में जीत का नया कीर्तिमान रचेगा।
भाषा आनन्द नरेश
नरेश