वाजपेयी के प्रतिद्वंद्वी भी मानते थे उन्हें भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’

वाजपेयी के प्रतिद्वंद्वी भी मानते थे उन्हें भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’

वाजपेयी के प्रतिद्वंद्वी भी मानते थे उन्हें भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’
Modified Date: December 25, 2025 / 05:07 pm IST
Published Date: December 25, 2025 5:07 pm IST

(अरुणव सिन्हा)

लखनऊ, 25 दिसंबर (भाषा) लखनऊ लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रहे पूर्व प्रधानमंत्री और ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय राजनीति का ‘अजातशत्रु’ कहा जाता था जिनके कोई शत्रु नहीं थे और यह बात उनके खिलाफ चुनाव लड़ चुके राजनीतिक विरोधी भी स्वीकार करते हैं।

वाजपेयी 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लखनऊ संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इनमें उनके तीन प्रधानमंत्री कार्यकाल भी शामिल हैं। उनकी 101वीं जयंती पर उनके कई राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने भी उन्हें सम्मानपूर्वक याद किया।

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लखनऊ की जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मधु गुप्ता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मुझे याद है कि मैंने अपना अभियान यह कहते हुए शुरू किया था कि अटल जी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह हैं।’’

गुप्ता ने 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा था।

वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल मई 1996 में 13 दिन का रहा, 1998-99 में 13 महीने के कार्यकाल के बाद वह पहले गैर-कांग्रेसी नेता बने जिन्होंने 1999 से 2004 तक पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 2004 उनका आखिरी चुनाव था, क्योंकि स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।

डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘‘…अटल जी एक सच्चे सज्जन व्यक्ति थे। 2004 में मुकाबला स्वस्थ था और इतने बड़े नेता के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए हम भाषा के चयन को लेकर बेहद सतर्क थे। किसी भी पक्ष ने एक-दूसरे के खिलाफ अभद्र या गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अटल जी प्रधानमंत्री थे। मुझे उनके खिलाफ चुनाव लड़ने में घबराहट नहीं थी, लेकिन यह भी पता था कि उनके प्रशंसक सभी दलों में थे।’’

वाजपेयी के खिलाफ 1996 में में चुनाव लड़ चुके अभिनेता से नेता बने राज बब्बर ने स्वीकार किया कि उन्हें शुरुआत से ही यह मुकाबला औपचारिकता जैसा लगा।

उन्होंने कहा, ‘‘जिस पल समाजवादी पार्टी ने मुझे लखनऊ से अटल जी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया, मुझे लगा कि नतीजा पहले से तय है।’’

बब्बर ने कहा कि जिनके भाषण सुनकर वे बड़े हुए, उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का विचार ही मन घबराहट पैदा करने वाला था।

उन्होंने याद किया, ‘‘दसवीं कक्षा के छात्र के रूप में हम उनके भाषण सुनने और समझने के लिए आगरा के सूरजभान का फाटक जाते थे।’’

उन्होंने कहा कि अटल जी के भाषणों ने उन्हें स्कूल और कॉलेज की बहसों की तैयारी में मदद की।

नामांकन के बाद का एक किस्सा सुनाते हुए बब्बर ने बताया, ‘‘मुंबई जाने वाली उड़ान में मैं उनके सामने वाली सीट पर था। मैंने उनके पैर छुए और आशीर्वाद मांगा। मैंने कहा कि अगर मेरे मुंह से गलती से भी उनके खिलाफ कुछ निकल गया, तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। अटल जी मुस्कुराए और बोले कि उन्हें भरोसा है कि मैं ऐसा नहीं करूंगा।’’

उन्होंने कहा कि अटल जी से उन्होंने सीखा कि राजनीतिक विरोधी दुश्मन नहीं होते।

बब्बर ने कहा, ‘‘1996 के बाद जब मुझे फिर उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का मौका मिला, तो मैंने साफ मना कर दिया। बाद में जब वह प्रधानमंत्री और मैं राज्यसभा सदस्य बना तो उन्होंने 1996 के चुनाव में मेरे व्यवहार की सराहना की।’’

पूर्व महापौर दाऊजी गुप्ता ने 1998 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। गुप्ता के पुत्र रत्नेश गुप्ता ने बताया, ‘‘मेरे पिता और अटल जी के बीच करीबी रिश्ता था। अटल जी हमारे गणेशगंज स्थित घर भी आते थे, इसलिए चुनाव के दौरान कोई मनमुटाव नहीं थी।’’

रत्नेश ने एक किस्सा साझा किया कि 1998 के चुनाव प्रचार के दौरान जब दोनों नेताओं के काफिले आमने-सामने आए, तो उनके पिता ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि पहले अटल जी के काफिले को जाने दिया जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘अटल जी ने अपनी खास मुस्कान के साथ हाथ हिलाकर जवाब दिया। बाद में मिलने पर उन्होंने मजाक में कहा-सियासत में रास्ता छोड़ना ठीक नहीं, तो मेरे पिता ने कहा-दूसरों का रास्ता रोकना भी ठीक नहीं। और दोनों हंस पड़े।’’

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री और सांसद दिनेश शर्मा ने वाजपेयी की सादगी को याद करते हुए कहा, ‘‘एक बार वह हमारे घर आए थे। मैं इतना घबरा गया कि उनके कपड़ों पर थोड़ी खीर गिर गई, लेकिन अटल जी बस मुस्कुराए और मुझे सहज कर दिया।’’

उन्होंने कहा कि वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा आधुनिक भारत के विकास की भावना को दर्शाती है।

भाषा अरुणव आनन्‍द खारी

खारी


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