बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के उप कमांडर खांडकर का निधन

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के उप कमांडर खांडकर का निधन

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के उप कमांडर खांडकर का निधन
Modified Date: December 20, 2025 / 06:30 pm IST
Published Date: December 20, 2025 6:30 pm IST

ढाका, 20 दिसंबर (भाषा) बांग्लादेश की स्थापना के लिए 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान मुक्ति वाहिनी के प्रमुख नेता, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) ए. के. खांडकर का शनिवार को निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे।

पांच दशक पहले 16 दिसंबर को जब पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत-बांग्लादेश संयुक्त बलों के सामने आत्मसमर्पण किया था तब खांडकर उपस्थित थे।

रक्षा मंत्रालय के अंतर-सेवा जनसंपर्क (आईएसपीआर) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, “आज (20 दिसंबर) पूर्वाह्न लगभग 10:35 बजे उम्र संबंधी जटिलताओं के कारण खांडकर ने अंतिम सांस ली।”

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उन्होंने 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में आयोजित समारोह में बांग्लादेश का प्रतिनिधित्व किया, जब लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के नेतृत्व में पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के नेतृत्व वाली भारत-बांग्लादेश संयुक्त सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

वीरता पुरस्कार बीर उत्तम से सम्मानित खांडकर, जनरल एम ए जी उस्मानी के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की मुक्ति युद्ध सेना, मुक्ति वाहिनी के दूसरे शीर्ष कमांडिंग ऑफिसर थे और बाद में देश की वायु शक्ति को बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पहले वायु सेना प्रमुख बने।

युद्ध प्रयासों में उनके योगदान को मान्यता देते हुए, बांग्लादेश ने उन्हें 2011 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, स्वतंत्रता पुरस्कार से सम्मानित किया।

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने अनुभवी सैनिक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “उन्होंने 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान साहस, दूरदर्शिता और नेतृत्व का प्रदर्शन करके स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।”

खांडकर 1952 में तत्कालीन पाकिस्तानी वायु सेना में शामिल हुए थे और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति युद्ध में शामिल होने से पहले एक लड़ाकू पायलट और प्रशिक्षक के रूप में सेवा की थी।

इसके बाद के वर्षों में, उन्होंने भारत में बांग्लादेश के उच्चायुक्त और ऑस्ट्रेलिया में राजदूत के रूप में कार्य किया।

खांडकर पूर्वोत्तर में स्थित अपने गृह जिले पाबना से अवामी लीग के टिकट पर दो बार संसद के लिए चुने गए थे।

भाषा प्रशांत माधव

माधव


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