गर्भावस्था में दर्दनिवारक या अवसादरोधी दवाएं लेने से ऑटिज्म होने का दावा भ्रामक : विशेषज्ञ

गर्भावस्था में दर्दनिवारक या अवसादरोधी दवाएं लेने से ऑटिज्म होने का दावा भ्रामक : विशेषज्ञ

गर्भावस्था में दर्दनिवारक या अवसादरोधी दवाएं लेने से ऑटिज्म होने का दावा भ्रामक : विशेषज्ञ
Modified Date: September 16, 2025 / 04:12 pm IST
Published Date: September 16, 2025 4:12 pm IST

(सूरा अलवान, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया)

वेंकूवर, 16 सितंबर (द कन्वरसेशन) पिछले कुछ दिनों में मीडिया में आई खबरों में यह दावा किया गया है कि गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर ली जाने वाली दवाएं जैसे पेरासिटामोल (एसिटामिनोफेन) और एसएसआरआई (जैसे प्रोज़ैक, ज़ोलॉफ्ट) लेने से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ता है। लेकिन वैज्ञानिकों और जन्म दोषों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों ने ऐसे दावों को भ्रामक और अधूरी जानकारी पर आधारित बताया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इन दवाओं का उपयोग आमतौर पर बुखार, दर्द, तनाव या मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज में किया जाता है और ये सभी समस्याएं स्वयं भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकती हैं। अतः यह कहना सही वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं है कि गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर ली जाने वाली दवाएं जैसे पेरासिटामोल (एसिटामिनोफेन) और एसएसआरआई (जैसे प्रोज़ैक, ज़ोलॉफ्ट) लेने से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ता है।

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प्रेक्षण आधारित अध्ययन, जिन पर ये दावे आधारित हैं, केवल संबंध दिखा सकते हैं, कारण नहीं सिद्ध कर सकते। साथ ही, कई अध्ययनों में मां की याददाश्त पर निर्भर डेटा, दवा की सही मात्रा या समय की जानकारी का अभाव, और परिणामों में असंगति जैसी कमियाँ पाई गई हैं।

दोनों प्रकार की दवाओं का दशकों से व्यापक अध्ययन किया जा रहा है। फिर भी, सुर्खियों में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, उसके बावजूद, एसिटामिनोफेन या एसएसआरआई के ऑटिज़्म का कारण बनने के प्रमाण कमज़ोर, असंगत और ऐसे हैं जिनकी आसानी से गलत व्याख्या की जा सकती है।

आनुवंशिकी और नैदानिक ​​टेराटोलॉजी — जन्म दोषों का वैज्ञानिक अध्ययन — की पृष्ठभूमि के साथ, मेरा शोध इस बात की जाँच करता है कि गर्भावस्था में मातृ जोखिम, आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के साथ मिलकर बच्चे के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं।

इस दृष्टिकोण से, मैं यह समझाना चाहता हूँ कि एसिटामिनोफेन और एसएसआरआई पर शोध को अक्सर गलत क्यों समझा जाता है, और जटिल विज्ञान को सुर्खियों तक सीमित करने से फ़ायदे से ज़्यादा नुकसान क्यों होता है।

गर्भावस्था में एसएसआरआई पर हाल ही में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के पैनल और अमेरिका के स्वास्थ्य एवं मानव सेवा सचिव रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर द्वारा एसिटामिनोफेन और ऑटिज़्म के बारे में किए गए सार्वजनिक दावों को देखते हुए, प्रमाण-आधारित जानकारी की आवश्यकता है। हालाँकि मेरा ध्यान ऑटिज़्म पर होगा, लेकिन यही मुद्दे गर्भावस्था के जोखिम को ध्यान अभाव/अतिसक्रियता विकार (एडीएचडी) से जोड़ने वाले मीडिया कवरेज पर भी लागू होते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब शोधकर्ता इन कारकों (जैसे मूल बीमारी, गलत वर्गीकरण, आनुवंशिक प्रभाव) को ध्यान में रखते हैं, तो जोखिम लगभग समाप्त हो जाता है।

विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑटिज्म एक जटिल, तंत्रिका संबंधी विकासात्मक स्थिति है, जिसका 70–80 प्रतिशत कारण आनुवंशिकी होता है। परिवारों में ऑटिज्म के लक्षणों की पुनरावृत्ति और जुड़वां बच्चों में किए गए अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं।

मीडिया कवरेज पर चिंता जताते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि “ऑटिज्म से जुड़ा जोखिम” जैसे भड़काऊ शीर्षक जनता को भ्रमित करते हैं और गर्भवती महिलाओं में डर और अपराधबोध को बढ़ावा देते हैं जबकि अध्ययन में देखी गईं वृद्धि अक्सर मामूली होती है। उदाहरण के तौर पर, 30 फीसदी सापेक्ष वृद्धि भी वास्तविक जोखिम में केवल एक फीसदी का इजाफा दर्शाती है।

विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि दवा और रोग दोनों के जोखिमों को संतुलित रूप से देखने की जरूरत है। कई बार दर्द, बुखार या अवसाद का इलाज न करवाना अधिक खतरनाक साबित हो सकता है, यहां तक कि यह गर्भपात, समयपूर्व प्रसव या मातृ मृत्यु का कारण बन सकता है।

अंत में कहा जा सकता है कि गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों को डराने वाली सुर्खियों की बजाय संतुलित, साक्ष्य-आधारित और संवेदनशील जानकारी दी जानी चाहिए। दवाओं से ऑटिज्म के “संभावित संबंध” को “सीधा कारण” बताना विज्ञान और समाज दोनों के लिए हानिकारक है।”

द कन्वरसेशन मनीषा नरेश

नरेश


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