जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ को कम कर आंका गया : अध्ययन | Flood in Brahmaputra river underestimated due to climate change: study

जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ को कम कर आंका गया : अध्ययन

जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ को कम कर आंका गया : अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : December 1, 2020/9:11 am IST

न्यूयॉर्क, एक दिसंबर (भाषा) एक नवीनतम अध्ययन में दावा किया गया है कि पूर्व के अनुमान के मुकाबले ब्रह्मपुत्र नदी में विनाशकारी बाढ़ कहीं जल्दी-जल्दी आएगी और यह स्थिति तब होगी जब इस आकलन में मानवीय गतिविधियों से जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव शामिल नहीं किए गए हैं।

अध्ययन में इस दावे का आधार गत 700 साल में नदी के बहाव का विश्लेषण है।

जर्नल ‘नेचर कम्युनिकेशन’ में प्रकाशित अनुसंधान पत्र के मुताबिक तिब्बत, पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में अगल-अलग नाम से बहने वाली नदी में दीर्घकालिक न्यूनतम बहाव पूर्व के अनुमान से कहीं अधिक है।

अमेरिका स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों सहित अनुसंधान दल में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि पहले अनुमान लगाया गया था कि नदी के न्यूनतम बहाव में प्राकृतिक अंतर मुख्य: जल स्तर पर आधारित है जिसकी गणना वर्ष 1950 से की जा रही है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि मौजूदा अध्ययन तीन स्तरीय आंकड़ों पर आधारित है। इसके मुताबिक पूर्व का अनुमान नए अनुमान से 40 प्रतिशत कम है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कार्यरत और अनुसंधान पत्र के प्रमुख लेखक मुकुंद पी. राव ने कहा, ‘‘चाहे आप जलवायु मॉडल पर विचार करें या प्राकृतिक परिवर्तनशीलता पर, संदेश एक ही है। हमें मौजूदा अनुमानों के विपरीत कहीं जल्दी-जल्दी बाढ़ आने की विभिषिका के लिए तैयार रहना होगा।’’

अनुसंधानकर्ताओं ने रेखांकित किया कि नदी से लगे इलाकों में करोड़ों लोग निवास करते हैं और नियमित रूप से जुलाई से सितंबर के बीच मानसून के मौसम में बाढ़ का सामना करते हैं।

राव और उनके साथियों ने यह पता लगाने की कोशिश की कि भविष्य में और कितने बड़े पैमाने पर बाढ़ आ सकती हैं।

इसके लिए उन्होंने उत्तर बांग्लादेश में नदी के औसत बहाव के आंकड़े का विश्लेषण किया जो 1956 से 1986 के बीच बहाव 41 हजार घन मीटर प्रति सेकंड था और 1987 से 2004 के बीच बढ़कर 43 हजार घन मीटर प्रति सेकंड हो गया।

अध्ययन में उन्होंने रेखांकित किया कि वर्ष 1998 में बांग्लादेश में सबसे विनाशकारी बाढ़ आई थी जिसमें 70 प्रतिशत हिस्सा पानी में डूब गया था और उस समय पानी का बहाव दुगुना था।

वैज्ञानिकों ने तिब्बत, म्यांमार, नेपाल और भूटान के 28 स्थानों पर प्राचीन पेड़ों के तने में बनी गांठों को अध्ययन किया जो ब्रह्मपुत्र नदी के जल आधार क्षेत्र में आते हैं क्योंकि मिट्टी में उच्च आर्द्रता होने पर पेड़ों के तने में कहीं बड़ी और स्पष्ट गांठ बनती हैं।

इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने वर्ष 1309 से 2004 के 694 वर्ष के कालखंड का आकलन किया और पाया कि सबसे बड़ी और स्पष्ट गांठें उन वर्षों में बनीं जब भयानक बाढ़ आई थी।

राव ने बताया, ‘‘पहले के अनुमान के अनुसार इस सदी के अंत में हर साढ़े चार साल पर हमें भयानक बाढ़ की उम्मीद करनी चाहिए लेकिन हम कह रहे हैं कि हमें हर तीन साल पर विनाशकारी बाढ़ की उम्मीद करनी चाहिए।’’

भाषा

धीरज शाहिद

शाहिद

 

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