कोलंबो, नौ अप्रैल (भाषा) श्रीलंका के विधि मंत्री विजयदास राजपक्षे ने आतंकवाद-रोधी प्रस्तावित कानून (एटीए) को लेकर विपक्ष और नागरिक समाज समूहों की आपत्तियों के बीच रविवार को कहा कि सरकार एटीए के संबंध में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों का अनुपालन करेगी।
राजपक्षे ने कहा कि संसद में विधेयक को पेश करने में देरी का निर्णय और अधिक विचार-विमर्श करने के विभिन्न संगठनों के अनुरोधों पर आधारित है, ‘‘ताकि यदि वे उच्चतम न्यायालय में जाना चाहें तो उनके पास ऐसा करने का पर्याप्त समय हो।’’
नया एटीए 1979 के बेहद कठोर और कुख्यात आतंकवाद की रोकथाम कानून (पीटीए) का स्थान लेगा, जिसे उस समय तमिल अलगाववादियों को रोकने के लिए लागू किया गया था।
इससे पहले, श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने ने एक अप्रैल को संवाददाताओं को बताया था कि नया आतंकवाद-रोधी कानून इस महीने के अंत तक पेश किया जाएगा, लेकिन विधि मंत्री ने बाद में कहा था कि इस विधेयक को पेश करने में देरी हो सकती है और इसे अप्रैल के आखिर में अथवा मई की शुरुआत तक पेश किया जा सकता है।
राजपक्षे ने कहा कि नये विधेयक के तहत रक्षा मंत्री को पीटीए के तहत दी गई शक्तियों को कम किया गया है, जो अनिश्चितकालीन और मनमानी हिरासत की अनुमति देती थी।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हिरासत में लेने का आदेश पुलिस देगी और गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे में अदालत में पेश करना होगा।’’
राजपक्षे ने कहा कि अगर नया एटीए व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों के खिलाफ है, तो उच्चतम न्यायालय इस संबंध में फैसला करेगा।
श्रीलंकाई संसदीय व्यवस्था के तहत, किसी भी नये विधेयक को संसद में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर उसकी संवैधानिकता पर निर्णय लेने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय फैसला देगा कि क्या उसे 225-सदस्यीय सदन में साधारण या पूर्ण बहुमत की आवश्यकता है और क्या इसे कानून बनाने के लिए राष्ट्रीय जनमत संग्रह की आवश्यकता है।
कुल 97 पृष्ठों का एटीए 17 मार्च को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया गया था।
विपक्षी दलों और नागरिक समाज समूहों ने नये एटीए पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि यह नागरिक समाज के उन विरोध प्रदर्शनों को लक्षित करता है, जो आर्थिक संकट से निपटने में तत्कालीन सरकार की विफलता के कारण पिछले साल हुआ था।
भाषा सिम्मी सुरेश
सुरेश
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